शीत ऋतू की ये,
रिमझिम फुहार।
श्वेत धवल चाँदनी,
हिमालय का श्रृंगार।।
शीत की गुनगुनी धूप,
पतझड मौसमों में।
पौष की सर्द रातों में,
शीतल मन्द बयार।।
पतझड के मौसम में भी,
पदम् पर बहार -बहार।
बसन्त के आगमन की,
शीत गमन का इंतजार।।
बर्फ की श्वेत चादरों से,
प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार।
जम गई सांसे शीत से,
शीत का कुरुर प्रहार।।
हिम से खिली -खिली धरा,
प्रकृति की अनुपम छटा।
शीत ऋतु तुम्हे प्रणाम,
तुम ही हो धरती की जान।।

मनोज तिवारी,,निशान्त,,