सौर भूतनाथ तीर्थ में होती है मनवांछित फल की प्राप्ति - लक्ष्मण नेगी की ऊखीमठ से खास रिपोर्ट

केदार घाटी / ऊखीमठ : देवभूमि उत्तराखण्ड की महिमा विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रन्थों तथा पर्यटकों, पर्वतारोहियों और प्रकृति प्रेमियों के लेखों, संस्मरणों और रचनाओं का अध्ययन भी कम आनन्दप्रद नहीं रहा। सबसे अधिक प्रेरक और उल्लासपूर्ण रही इस भूखण्ड की निर्मल जलधाराओं, हिमश्रृंगों और प्रमुख स्थानों से जुड़ी, युग - युग से संचित और पोषित, अनेक जनश्रुतियां और कथानक, जो जनवाणी द्वारा उत्सवों, मेलों और लोकगीतों में मुखर होती रहती है। स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, वामनपुराण, श्रीमद्भागवत, महाभारत, वृहद नारदीय सूक्त तथा अनेक प्राचीन ग्रन्थों के विभिन्न अध्यायों पर देवभूमि उत्तराखंड की महिमा का विस्तृत गुणगान वर्णित है।देवभूमि उत्तराखंड का अधिकांश  भूभाग भव्य और मनोहर हिममंडित शैलमालाओं से घिरा हुआ है।यह क्षेत्र हिमालय का अन्तराल है जहाँ शिव के कल्याणमय और रूद्र के रौद्र का समन्वय होता है और सौन्दर्य में रोमांच के समावेश पर श्रद्धा का उदय होता है। देवभूमि उत्तराखंड के आध्यात्मिक परिवेश के साथ - साथ यहाँ के भौतिक सौन्दर्य को भी आत्मसात किया जा सकता है जिसमें सघन वनों का कौमार्य, उफनती नदियों का यौवन और मीलों तक फैलीं घाटियों और मैदानों का पुष्पित सौन्दर्य है!देवभूमि उत्तराखंड के पग - पग पर विराजमान हर तीर्थ व घाटी की विशिष्ट पहचान युग - युगान्तर से रही है मगर केदारखण्ड के अन्तर्गत क्यूजा घाटी के हिल स्टेशन भणज से लगभग चार किमी दूर अपार वन सम्पदा के मध्य विराजमान सौर भुतेर तीर्थ की महिमा का गुणगान जितनी की जाय उतनी कम है। सौर भूतनाथ क्यूजा घाटी के ग्रामीणों के कुल देवता, ईष्ट देवता व भूम्याल देवता के रूप में पूजित है।


संस्कृत महाविद्यालय बसुकेदार के पूर्व प्रधानाचार्य जगदम्बा प्रसाद नौटियाल की पुस्तक श्री तुंगेश्वरयहात्यम के अनुसार यह स्थान भगवान तुंगनाथ की क्रीड़ा भूमि मानी गई है! इस भूमि से तुंगनाथ जी का अत्यधिक लगाव रहा है जिन्होंने प्रसन्नता पूर्वक यह स्थान अपने प्रतिष्ठावान वीर वीरभद्ररूप भूतनाथ को समर्पित किया है। लोक मान्यताओं के अनुसार शंकराचार्य जी ने जब इन तीर्थों का नाम स्वरूप रखा तो भगवान शंकर के उस रूप के आधार पर ही अवस्थापित किया कहते हैैं, उस समय पर मार्कण्डेय नामक ऋषि ने सौरभूत की उस धरा पर आकर भगवान सूर्य की तप साधना की।वास्तव में सौर का शाब्दिक अर्थ कालवाचक है जिसे सूर्य के एक उदय से दूसरे उदयकाल तक के समय को कहते है, तथा दूसरा अर्थ सूर्य का उपासक अथवा भक्त कहा गया है। इससे पूर्ण प्रतीत होता है कि इस स्थान का नाम तब से सौर ही प्रचलित हुआ है। इस तीर्थ में ऋषि प्रभाव की शक्ति से अभिभूत होकर बाबा तुंगनाथ की योगमाया यक्षिणी उस स्थान की रक्षा हेतु हिमालय देवदर्शिनी से यहाँ पहुंची। जिस शक्ति की अनन्त महिमा देखकर ऋषि ने उन्हें बीच में ही स्तम्भित कर दिया।मातृभाव पाकर कि तुम जगन्माता हो, मै तुम्हारा ही पुत्र हूँ इस जंजाल में न पड़कर आप अपने प्रिय भक्तों की रक्षा करें! इस तीर्थ में तुम रक्षिणी रूप में प्रसिद्ध होगी। उसके बाद पुनः एक शिखर पर तुंगनाथ जी रहे तो उसे के ठीक सामने वाले दूसरे पर्वत पर रक्षिणी देवी का वासस्थान बना, जिसकी वासभूमि रमणीय, दर्शनीय तथा वन्दनीय है।



सौर भूतनाथ तीर्थ में महाशक्ति रुप नागराजा का आगमन माना गया है तथा ऋषि ने उन्हें दो कोस दूर जंगलों के मध्य स्थान दिलाया। नागराजा ने अपना भीमकाय इतना बड़ा बनाया कि आज भी उस स्थान जमीन में गहरी खाईयाँ स्पस्ट दिखाई देती है, इसलिए वह स्थान नागघिराव नाम से विख्यात है। सौर भूतेर तीर्थ के निकट अखोडी गाँव में आज भी यदि किसी प्रकार की अप्रिय घटना घटती है तो सौर भूतनाथ आवाज लगाकर ग्रामीणों को सचेत कर देते हैं। सौर भूतनाथ तीर्थ के ऊपरी हिस्से में विराजमान विशाल पर्वत पर तीन जलधारायें प्रवाहित होने से उस स्थान को त्रिवेणी नाम से जाना जाता है।रूद्रप्रयाग - गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग से बासवाडा हिल स्टेशन से बासवाडा - मोहनखाल मोटर मार्ग पर भणज हिल स्टेशन तक बस, टैक्सी या निजी वाहन से पहुंचने के बाद सौर भुतेर तीर्थ पहुंचने के लिए मचकण्डी गाँव होते हुए चार किमी की दूरी पैदल तय करने पड़ती है या फिर भणज - अखोडी चार किमी निजी वाहन से अखोडी गाँव पहुंचने के बाद अखोडी गाँव से तीन किमी दूरी तय करने बाद सौर भूतनाथ तीर्थ पहुंचा जा सकता है। पण्डित बच्ची राम नौटियाल, दिवाकर प्रसाद नौटियाल, आशुतोष प्रसाद नौटियाल, अरूण प्रसाद नौटियाल बताते है कि सौर भूतनाथ तीर्थ में हर श्रद्धालु को मनौवाछित फल की प्राप्ति होती है! जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुमन्त