जल जीवन मिशन से हर घर में नल से जल होगा अच्छादित - लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ

 ऊखीमठ : जल जीवन मिशन के तहत होंगे जल स्त्रोत संवर्धन, संरक्षण के कार्य

  जल जीवन मिशन के तहत हर घर, नल से जल होगा आच्छादित

हर घर को नल देने की परिकल्पना को साकार करने के उद्देश्य से जिला कार्यालय कक्ष में जिलाधिकारी मनुज गोयल ने अधिकारियों की समीक्षा बैठक ली।  जिलाधिकारी ने बैठक में कार्यदायी संस्थाओं को स्पष्ट निर्देश दिए कि जल जीवन मिशन के तहत  कार्यशील घरेलू नल कनेक्शन की डीपीआर के साथ ही जिन योजनाओं में पर्याप्त पानी नहीं है, उन योजनाओं में पानी बढ़ाने हेतु डीपीआर तैयार की जाय। जिलाधिकारी ने स्पष्ट निर्देश दिए कि जल जीवन मिशन के मानक अनुसार पेयजल बढ़ाने हेतु योजनाओं के जलवृद्धिकरण( ऑग्मेंटशन) की डीपीआर ससमय तैयार की जाय। जल वृद्धिकरण के अंतर्गत जल स्त्रोत संवर्धन, संरक्षण व धूसर जल(ग्रे वाटर)  प्रबंधन के कार्य भी किये जायेंगे। जिलाधिकारी ने कहा कि जल वृद्धिकरण की डीपीआर तत्काल तैयार की जाये ताकि लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी की आपूर्ति भी की जा सके। जिलाधिकारी ने बताया कि जल जीवन मिशन के तहत केवल पानी को हर घर तक पहुँचाया ही नही जाएगा, बल्कि पानी को बचाने और जल संरक्षण जैसे योजनाओं पर भी कार्य किया जाएगा ताकि ज़मीन के नीचे लगातार कम होते पानी के स्तर को भी फिर से रिचार्ज किया जा सके तथा भविष्य में भी हमें शुद्ध जल मिलता रहे।


जल जीवन मिशन के तहत जनपद के 42484 परिवारों को नए जल संयोजन से जोड़ा जाएगा।  प्रथम चरण में 30 दिसम्बर, 2020 तक 07 विद्यालयों व 188 आंगनवाड़ी केंद्रों में जल संयोजन का लक्ष्य जलनिगम व जल संस्थान को दिया गया है। 

बैठक में अधिशासी अभियंता जल निगम नवल किशोर ने बताया कि जल जीवन मिशन के तहत 111करोड़ 50 लाख की 591 डीपीआर तैयार हो चुकी है जिसमे से 583 डीपीआर में स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। इसके साथ ही लगभग 510 डीपीआर के टेंडर भी खुल गए है। जलजीवन मिशन के तहत प्रथम चरण में 30 दिसम्बर, 2020 तक 07 विद्यालयों व 188 आगनवाड़ी केंद्रों में जल संयोजन दिया जाएगा।

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काली शिला की पूजा-अर्चना से मनुष्य को अभीष्ट फल मिलता है - ऊखीमठ से लक्ष्मण नेगी की खास रिपोर्ट : ऊखीमठ - देवभूमि उत्तराखंड की पावन धरती धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से साधना के क्षेत्र में अपना सर्वोत्कृष्ट स्थान रखती है, वास्तव में सिद्धि पाने के लिए साधना सदा शान्त, एकान्त और सिद्ध स्थलों में ही लाभप्रद होती है। वेदव्यास की चिन्तन भूमि, पाण्डवों का स्वर्गारोहण, उद्वव की तपस्थली, राजा भगीरथ की साधना स्थली, आदिगुरु शंकराचार्य को प्रेरणा देने वाली और महाकवि कालिदास को जन्म देकर विश्व विख्यात बनाने वाली यह हिमालय की पावन धरती है, इसलिए हिमालय के उत्तराखण्ड को तपस्या के लिए सभी तपस्वियों ने चयन किया है। देवभूमि उत्तराखंड वास्तव में ऐसी मुख्य रमणीक देव स्थली है जहाँ कनखल सती कुण्ड से लेकर 12 हजार फीट के उतंग शिखरों पर शक्तिदात्री माँ के अनेक सिद्धपीठ विधमान हैं। यदि मानव के ह्दय में इन सिद्धपीठों के प्रति विश्वासमयी भावना हो तो जगत जननी माँ के दर्शन किसी न किसी रुप में किये जा सकते हैं। इसलिए शक्ति की साधना को ही समस्त कार्यो की सिद्धि माना जाता है! माँ जगत जननी की महिमा का वर्णन ऋषि मुनियों ने भी बड़ी गहनता से किया है तथा सर्व शक्तिमान देवताओं को भी सदा ही अपनी विपदाओं के निवारणार्थ इसी आध्या शक्ति की ही उपासना करनी पडी है।परम पिता भगवान शंकर व जगत जननी मोक्षदायिनी माँ भवानी की इस तपोभूमि उत्तराखंड के कण - कण में अवस्थित देवी के शक्तिपुजो में जो मानव अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है वह व्यक्ति सांसारिक सुखों को भोग कर अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर युगों तक शिवलोक में पूजनीय होता है। केदार घाटी के अन्तर्गत सिद्धपीठ कालीमठ के पूर्व भाग में दो कोस दूर विशाल पर्वत पर विराजमान भगवती काली का तीर्थ काली शिला नाम से विश्व विख्यात है। इस तीर्थ में भगवती काली की विशाल शिला है तथा विशाल शिला पर 64 यंत्र विधमान हैं, भगवती काली शिला की पूजा करने से अखिल कामनाओं व अर्थों की पूर्ति होती है। काली शिला तीर्थ मधु गंगा व सरस्वती नदियों के मध्य विशाल पर्वत पर है! भगवती काली शिला मदमहेश्वर घाटी व कालीमठ घाटी के ग्रामीणों की अराध्य देवी मानी जाती है! मदमहेश्वर घाटी के राऊलैक तथा कालीमठ घाटी के ब्यूखी गाँव से पैदल मार्गों से सिद्धपीठ काली शिला पहुंचा जा सकता है। इस तीर्थ में भगवती काली के मन्दिर की पूजाये देव स्थानम् बोर्ड तथा विशाल शिला की पूजा स्थानीय हक - हकूकधारियों द्वारा की जाती है।भगवती काली शिला की महिमा का वर्णन क्रूम पुराण के अध्याय 56 के श्लोक संख्या चार में शिलातले मदं न्यस्त नास्तिकानां शब्दों में किया गया है जबकि महाकवि कालिदास ने भी काली शिला तीर्थ की महिमा का वर्णन गहनता से किया है। स्कन्ध पुराण के केदारखण्ड के अध्याय 89 के श्लोक संख्या 40 से 49 में काली शिला तीर्थ की महिमा का वर्णन विस्तार से किया गया है, केदारखण्ड में कहा गया है कि सिद्धपीठ कालीमठ के पूर्व भाग में दो कोश दूर पर्वत पर रणमण्डना नाम से महादेवी हैं! वहाँ जाने पर मनुष्य स्वस्थ देवीलोक को प्राप्त करता है। शरद व बसन्त ऋतुओं के नवरात्रों में जो मनुष्य भक्ति पूर्वक भगवती काली को नैवैध चढा़ता है वह देव लोक में युगों तक पूजनीय होता है तथा वह घुंघरूओं के समूह की माला से युक्त उत्तम विमान पर सवार होकर चारों ओर अप्सराओं के समूह, गन्धवों,सिद्धों और किन्नरो से शोभायमान हो सूर्य मण्डल का भेद करके मुनिवरो के अभीष्ट एवं दु:ख रहित ब्रह्मलोक को जाता है। यह तीर्थ समस्त पापों का शमन करने वाला और सकल उपद्रवों का नाश करने वाला है! नित्य दान करने वाले मनुष्यों को यह तीर्थ ऐश्वर्य देने वाला है! इस पर्वत पर महाकाली ने आकाश में उछलकर अत्यन्त दृढ़ हाथों से पृथिवी को ताडित किया था।आज भी वहाँ हाथों का अत्यन्त निर्मल चिह्न दिखाई देते हैं , तपस्या की सिद्धि देने वाला यही उत्तम स्थान है, इस पर्वत पर सिद्ध, गन्धर्व और किन्नर देवी के साथ सुखपूर्वक विचरण करते है।भगवती काली का पावन तीर्थ काली शिला की पूजा - अर्चना करने से मनुष्य को पुत्र पौत्रादि की प्राप्ति व यश वृद्धि का अभीष्ट फल मिलता है! इस तीर्थ में दशकों से बाबा बरखा गिरी। मुक्तेश्वर गिरी व जर्मनी निवासी सरस्वती माई भगवती काली की भक्ति में तत्लीन है! शिक्षाविद देवानन्द गैरोला,चन्द सिंह नेगी इं0कृष्ण कुमार सिंह बिष्ट अनिल जिरवाण,धीर सिंह नेगी विनोद नेगी साध्वी सरस्वती बताते है कि इस तीर्थ में एक रात्रि निवास करने से मनुष्य को परम आनन्द की अनुभूति होती है! हरेन्द्र खोयाल,शिव सिंह रावत,रवींद्र भट्ट. दलीप रावत, मदन भटट् रणजीत रावत का कहना है कि काली शिला तीर्थ में भगवती काली की विशाल शिला की परिक्रमा का विशेष महत्व माना गया है।
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