पैनखंडा जोशीमठ में सदियों से ही अपनी पौराणिक संस्कृति परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध रही है। इस क्षेत्र के लोगों का देव देवताओं के प्रति अटूट विश्वास आस्था रही है, पैनखंडा पट्टी के अनेक गांव उर्गम घाटी थैंग, पल्ला जखोला, सेलंग, तपोवन, बडगांव में विश्वकर्मा जागर का आयोजन होता है। इस वर्ष सेलंग गांव में 27 से 29 दिसम्बर पोष माह में 61 वर्षों के उपरांत इस मेले का आयोजन सुनिश्चित हुआ। विश्वकर्मा मेले में सर्वप्रथम दिन भूमि क्षेत्र पाल की अगवाई में कटार निशान के साथ मेला स्थल पर आटा चावल व अन्य पूजा सामाग्री का भंडारण किया जाता है फिर जिस गांव के देवता मुख्य अतिथि उद्घाटन कर्ता होते है वो शाम को अपने गाजे बाजे के साथ आकर मेला का उद्घाटन अवतरित होकर करते हैं जिसे स्थानीय भाषा में तौंडी तोडना कहा जाता है। फिर होता है मेला स्थल पर या विश्वकर्मा मंदिर में चित्रांकन जिसमे शेषनाग में विराजमान भगवान विष्णु लक्ष्मी से शुरुआत होकर ब्रह्म गणेश समुद्र मंथन भगवान विष्णु के 24 अवतार राम लखन सीता पांच पांडव गरूड हनुमान शिव शेर वाहिनी दुर्गा रावण और अन्त मे कीचक वध का वर्णन होता है। फिर पर्दा से ढक दिया जाता है भूमि क्षेत्र पाल के अवतरित पन्ना ही पर्दा खोलकर और चित्रकारों को आशीर्वाद देते हैं। जागरवेता जागर शुरू करते हैं जो निरन्तर 36 घंटों तक चलता है। मेले के प्रथम दिन देव शिल्पी को चावल आटे को पकाकर भोग लगाया जाता है, रिगांल के बने फडीक में तिमले के पत्ते के ऊपर मेले के दूसरे दिन भूमि क्षेत्र पाल जो न्यूतारू होते हैं मेले का शुभारंभ करते हैं।
द्वितीय दिवस पर न्यूतारू का आगमन होता है मुख्य भूमि क्षेत्र पाल देवता उद्घाटन करते है जिसे तौंडी तोडना कहा जाता उद्घाटन के लिए पूर्व से ही निर्धारित न्यूतारू गांव के भूमि क्षेत्र पाल का अधिकार होता है जो हजारों सालो से ही चली आ रही लिखित बही में लिखा होता है। पुनः देवी देवताओं का मिलन होता है और जागर गायन शुरू होता है। मेजबान भूमि क्षेत्र पाल अन्य सभी अतिथि देवताओं का आदर सत्कार करते हैं तीसरे दिन ब्रहममुर्त में से रसोड़ा यानि देवताओं का भोग लगता है। विशाल खेत में तिमले के पत्तों में लगभग 500 से 1000 पत्तो में भोग लगता है। देवी देवताओं का जागर के अनुसार अवतरित होते है सभी भक्त देवताओं के पीछे दौडते हुये चलते चलते प्रसाद ग्रहण करते हैं।
अन्त में 8 माल बनाये जाते हैं जिनका भूमि क्षेत्र पाल वध कर देते हैं तब नारायण गरूड वाहन मे आते है और कंस को धरती के नीचे दबा दिया जाता है। सभी न्यूतारू अपने - अपने गांव के लिए विदा होते हैं। मेला मिलन का प्रतीक होता है जिसमें लोग आपनी धियाण बहिनों को बुलाते है 61 वर्षों के बाद शानदार आयोजन के सफल संचालन के लिए सेलंग वासियों को बहुत बहुत बधाइयाँ।