देवभूमि उत्तराखंड में कई महत्वपूर्ण तीर्थ, पर्यटन, बुग्याल, सरोवर, हिमशिखर अपनी विशिष्टता के होते हुए भी प्रचार - प्रसार के अभाव में तीर्थ यात्रियों व सैलानियों से अनजान बने हुए हैं- लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ

ऊखीमठ : देवभूमि उत्तराखंड की तपोभूमि आदिकाल से ही आस्था और विश्वास का केंद्र रही है। अनेकों सिद्ध - मुनियों ने इस देवभूमि पर त्याग और तपस्या कर अपने को महान बनाने का गौरव प्राप्त किया है। गढ़वाल हिमालय जहाँ एक ओर अपने तीर्थ स्थलों, अद्वितीय प्राकृतिक सौन्दर्य आदि विशेषताओं के कारण देश - विदेश के धर्मानुरागियों एवं पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बिन्दु है। वहीं आज भी गढ़वाल में आज भी पाण्डव नृत्य, जीतू बगडवाल नृत्य, नाग सिद्धवा नृत्य, ऐडी आछरी नृत्य के साथ कई विशेषताएं विधमान हैं। वर्तमान में तीर्थाटन व पर्यटन की जो परम्परा यहाँ चली है उसमें दूर दराज से यात्री यहाँ पहुंचते हैं मगर कुछ ही तीर्थ स्थलों की यात्रा कर वे सम्पूर्ण देवभूमि उत्तराखंड घूमने का सुन्दर सपना लेकर चले जाते हैं। देवभूमि उत्तराखंड में आज भी कई महत्वपूर्ण तीर्थ, पर्यटन, बुग्याल, सरोवर, हिमशिखर अपनी विशिष्टता के होते हुए भी प्रचार - प्रसार के अभाव में तीर्थ यात्रियों व सैलानियों से अनजान बने हुए हैं।इसी श्रृंखला में क्यूजा घाटी के कान्दी गाँव में विराजमान कौलाजीत महाराज का तीर्थ अपनी विशिष्ट स्थापत्य कला एवं तीर्थ महत्ता व प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर होते हुए भी तीर्थ यात्रियों व सैलानियों की नजरों से ओझिल बना हुआ है।इस तीर्थ में विराजमान भगवान कौलाजीत को श्री भोगाजीत महाराज का सबसे बड़ा भाई माना जाता है।


बारह जीत शक्तियों के रूप चरित्रों में सबसे बड़े होने के नाते भगवान कौलाजीत के गूठ गाँव कान्दी में अन्य देवताओं का विश्राम करना निषेध माना गया है। मान्यता है कि स्थानीय पारंपरिक जात यात्राओं के कान्दी गाँव में आगमन पर कौलाजीत के विश्राम में व्यवधान होता है। भगवान कौलाजीत की क्षेत्र में बहुत बड़ी मान्यता है सांप द्वारा काटे गये व्यक्ति को मन्दिर में ले जाने पर सर्पदंश से अवश्य मुक्ति मिलती है।भगवान कौलाजीत के मन्दिर में नित्यप्रति पूजा तथा भोग लगता है। स्थानीय श्रद्धालु उपज का प्रथम भोग पूजा के रूप में मन्दिर में अर्पित करते हैं। भगवान कौलाजीत का मन्दिर पर्वतीय शैली में बना हुआ अत्यंत प्राचीन है। इस तीर्थ में कौलाजीत महाराज की शक्ति कनासैण भी विराजमान है। कान्दी गाँव में विराजमान कौलाजीत महाराज की पूजा का अधिकार भट्ट जाति के ब्राह्मणों को है।


क्यूजा घाटी के कान्दी गाँव में विराजमान कौलाजीत महाराज के तीर्थ में पहुंचने के लिए रूद्रप्रयाग - गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग से बासवाडा हिल स्टेशन से बासवाडा - चन्द्रनगर - मोहनखाल मोटर मार्ग पर कणसिली खूबसूरत हिल स्टेशन से या फिर रूद्रप्रयाग - पोखरी मोटर मार्ग पर मोहनखाल से पहुंचा जा सकता है। कणसिली व मोहनखाल से कान्दी गाँव तक यातायात सुविधा उपलब्ध हैं। कान्दी गाँव में विराजमान कौलाजीत महाराज के तीर्थ में अक्षुण्य सौन्दर्य  का भण्डार है इसलिए इस तीर्थ में पर्दापण करते ही भयावही बैचेनी शान्त हो जाती है। कौलाजीत महाराज के तीर्थ के दूसरे छोर पर क्रौंच पर्वत कार्तिक स्वामी तीर्थ से निकलने वाली पतित पावनी नील गंगा की कल - कल निनाद हर किसी को आनन्दित कर देता है। दुःख तारिणी नील गंगा के आंचल में 360 जल कुण्ड है जिनमें स्नान करने से मानव का जीवन धन्य हो जाता है।कौलाजीत महाराज मन्दिर के पुजारी गोपाल राम भटट्, जगदीश चन्द्र भटट् का कहना है कि कौलाजीत महाराज के मन्दिर में पूजा - अर्चना करने से बाह्मण विधा पाते हैं, क्षत्रियों को विजय प्राप्त होती है तथा डरे हुए मनुष्यों को डर नहीं सताता है। पण्डित सच्चिदानंद भटट्, शान्ति प्रसाद भटट् का कहना है कि कौलाजीत महाराज का स्मरण करने मात्र से भूत - प्रेत - पिशाच आदि की बाधायें नष्ट हो जाती है। रामेश्वर प्रसाद भटट्, ओमप्रकाश भटट् का कहना है कि कौलाजीत महाराज के दिव्य दर्शन करने से बुद्धि, तेज, आयु, यश, सम्पत्ति,सुख में वृद्धि होती है! जिला पंचायत सदस्य कण्डारा सुमन नेगी,  प्रधान मीना देवी,सुनील सिंह नेगी, राहुल सिंह नेगी, यतेन्द्र प्रसाद भटट् का कहना है कि कौलाजीत महाराज के मन्दिर सहित कान्दी गाँव को तीर्थाटन, पर्यटन से जोड़ने के साथ ही कान्दी गाँव - कार्तिक स्वामी पैदल ट्रेक को विकसित करने की कवायद होती है तो स्थानीय युवाओं के सन्मुख स्वरोजगार के अवसर प्राप्त होगें तथा गावों से होने वाले पलायन पर रोक लगेगी।