भेड़ पालक छह माह सुरम्य बुग्याल में प्रवास के बाद गांवों की ओर रूख करने लगे - लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ

ऊखीमठ! छह माह सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालकों ने गावों की ओर वापसी का रूख कर दिया है। दीपावली तक सभी भेड़ पालकों के अपने गाँव वापस लौटने की परम्परा है! पूर्व में भेड़ पालकों के गाँव से बुग्यालों की ओर रवाना होने तथा छह माह बुग्यालों में प्रवास के बाद गाँव लौटने पर भव्य स्वागत किया जाता था। मगर भेड़ पालन व्यवसाय धीरे - धीरे कम होने के साथ ही यह परम्परा भी समाप्त हो चुकी है।बता दें कि केदार घाटी के सीमान्त गावों के भेड़ पालक अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह से अपने गाँव से सुरम्य मखमली बुग्यालों के लिए रवाना हो जाते हैं तथा धीरे - धीरे अत्यधिक ऊंचाई वाले बुग्यालों में प्रवास करने लगते हैं! भेड़ पालको का जीवन आज भी किसी तपस्या से कम नहीं है।क्योंकि भेड़ पालक आज भी सुरम्य मखमली बुग्यालों में बिना संचार, विद्युत व्यवस्था के दिन व्यतीत करते हैं। जबकि अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों में ईधन व पेयजल का भी संकट बना रहता है। क्योंकि ऊंचाई वाले बुग्यालों में सिर्फ मखमली घास होने के कारण तथा पेड़ पौधों के न होने से ईधन का अभाव बना रहता है।


भेड़ पालकों का दाई व लाई त्यौहार मुख्य रुप से मनाया जाता है।प्रदेश सरकार द्वारा भेड़ पालकों को प्रोत्साहन न देने तथा ऊंचाई वाले इलाकों में अधिक कठिनाई होने के कारण भेड़ पालन व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। छह माह सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने के बाद इन दिनों भेड़ पालको ने गाँव की ओर रूख करना शुरू कर दिया है। कुछ भेड़ पालक अभी भी लगभग सात हजार फीट की ऊंचाई पर प्रवास कर रहे हैं जो दीपावली तक गाँव लौट सकते हैं! जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा बताते है कि पूर्व में भेड़ पालको के गाँव लौटने पर ग्रामीणों में भारी उत्साह बना रहता था मगर संचार युग के कारण भेड़ पालकों के गाँव आगमन का उत्साह सोशल मीडिया में कैद हो गया है। कनिष्ठ प्रमुख शेलेन्द्र कोटवाल ने बताया कि पूर्व में भेड़ पालन व्यवसाय यहाँ के जनमानस का मुख्य व्यवसाय था मगर भेड़ पालन व्यवसाय में गिरावट आना चिन्ता का विषय बना हुआ है।प्रधान संगठन ब्लॉक अध्यक्ष सुभाष रावत, भेड़ पालन व्यवसाय एसोसिएशन अध्यक्ष महादेव धिरवाण ने बताया कि भेड़ पालन व्यवसाय की परम्परा हमारा पौराणिक व्यवसाय है धीरे - धीरे युवाओं को भी भेड़ पालन व्यवसाय से जोड़ने के सामूहिक प्रयास किये जायेंगे। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन का कहना है कि पूर्व में भेड़ पालको के गाँव से विदा होने तथा गाँव लौटने पर जिस प्रकार ग्रामीणों में उत्साह बना रहता था ग्रामीणों द्वारा भेड़ पालको का भव्य स्वागत करने की परम्परा थी उस परम्परा को जीवित रखने के भरसक प्रयास किये जायेंगे।