ऊखीमठ : पर्वतराज हिमालय की गोद में बसे भगवान केदारनाथ का पावन धाम ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग के रूप विश्व विख्यात है। स्कन्द पुराण के केदारखंड के अध्याय संख्या 40 के श्लोक संख्या 14 से 29 , अध्याय 41 के श्लोक संख्या 4 से 16 तथा अध्याय संख्या 42 के श्लोक संख्या 1 से 44 तक भगवान केदारनाथ के पावन धाम व भगवान शिवजी की महिमा का गुणगान विस्तृत से किया गया है। केदाखण्ड में वर्णित महिमा के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों ने ब्यास जी से कहा, हम आपकी शरण में आये हैं, हमें कैसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। वंश हत्या से आक्रान्त और गुरू हत्या से पीड़ित हम आपकी शरण में आये हैं। किस कर्म से हम उत्तम गति पायेगें। पाण्डवों के बचन सुनकर ब्यास जी बोले ----- वंशजों की हत्या करने वाले सभी पाण्डवों सुनो।
सबका उद्धार देखा गया है परन्तु वंश हत्या करने वालों का उद्धार कहीं नहीं देखा गया। केदारेश्वर के बिना उद्धार असंभव है।अब वहीं जाओ, जहाँ शिव के दर्शन की लालसा वाले ब्रह्मा आदि देवता तप में निष्ठा रखकर कर्म से पवित्र हो उत्तम तप करते हैं और जहाँ नदियों में श्रेष्ठ गंगा अनेक धाराओं में प्रवाहित है।ब्यास के बचन सुनकर पाण्डव प्रसन्नचित्त हुए तथा उनको प्रणाम करके वे कैलाश पर्वत पर गये तथा वहीं निवास करते हुए परम गति को प्राप्त हुए। जिस तीर्थ की सेवा करने से पाण्डव शुद्ध हुए वह परम स्थान देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। वह पचास योजन लम्बा तथा तीस योजन चौड़ा है। वह स्वर्ग जाने का स्थान है। उसे पृथ्वी नहीं कहते वह क्षेत्र केदार मंडल के नाम से विख्यात है। पशु पक्षी की योनि में प्राप्त जीव भी वहाँ शरीर छोडने पर शिवपुरी में वास करते हैं। वह क्षेत्र अनेक तीर्थों से संयुक्त बहुत से पवित्र वनों से युक्त, सैकड़ों - हजारों शिवलिंगों से शोभित, नाना नदियों और नदों से व्याप्त, नदियों के संगमों से शोभित, अनेक क्षेत्रों से परम पवित्र और विविध पीठों से अलंकृत है। उसी महान क्षेत्र में वे धाराएं हैं जो कही गई है। वे सब पवित्र एवं पापनाशक हैं। जो धारा मधु के रंग की है वह मधु गंगा कहलायी। जो दूध बहाने वाली दूसरी धारा है वह क्षीर गंगा कहलाती है।बीच की जो श्वेत वर्ण वाली धारा है वह स्वर्गद्वार कही गई है। महान जलराशि वाली धारा मन्दाकिनी मानी गयी है। केदारभवन में ख्यात गंगा केदार नाम वाली है।उन धाराओं में स्नान करके मनुष्य शिवसायुज्य मोक्ष को प्राप्त करता है।
केदारखण्ड के अध्याय 41 में भगवान शंकर स्वयं पार्वती से कहते हैं कि संसार में वे पुण्यात्मा व्यक्ति धन्य है जो कही यह बोल भी देते हैं कि हम केदार क्षेत्र में जायेंगे। ऐसे व्यक्ति के तीन सौ पीढ़ियों के पितर शिवलोक को चले जाते हैं।जैसे सतियों में तुम, देवताओं में विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, योगियों में याज्ञवल्क्य, भक्तों में नारद, शिलाओं में वैष्णवी शाल ग्रामशिला, वनों में वदरीवन, धेनुओ में कामधेनु, मनुष्यों में विप्र, विप्रो में ज्ञानदाता, स्त्रियों में पतिव्रता, प्रियो में पुत्र, पदार्थों में सुवर्ण, मुनियों में शुकदेव, सर्वज्ञो में ब्यासदेव, मनुष्यों में राजा, देवताओं में इन्द्र, वसुओं में कुबेर पुरियों में कैलाशपुरी, अप्सराओं में रंभा और गन्धर्वों में तुम्बक श्रेष्ठ है उसी प्रकार क्षेत्रों में केदार नामक क्षेत्र श्रेष्ठ है। केदारखंड के अध्याय संख्या 42 के श्लोक संख्या 1 से 42 तक वर्णित है कि केदारपुरी के दक्षिण दिशा में रेतसकुण्ड है जिसके जल पीने मात्र से मनुष्य शिव रुप हो जाता है।उसके दर्शन मात्र से मनुष्य परम गति को प्राप्त करता है। मन्दाकिनी के तट पर जो तीर्थ है उसमें निचले प्रदेश में शिवलोकदायक शिव कुण्ड विख्यात है उसमें भूरे रंग के मोक्षदायक शिवलिंग मिलते हैं वहां सात रात उपवास करके प्राण छोडने पर विद्वान व्यक्ति शिवसायुज्य मोक्ष प्राप्त करता है। जहाँ से धारा निकलती है उसके ऊपर भृगुतुंग नामक तीर्थ है जो गोघाती,कृतघ्न ब्रह्मघाती तथा विश्वासघाती जैसे पापियों को भी मोक्ष देने वाला है। श्रीशिला पर जो तप करता है और जो अत्यन्त ऊंचे भृगुतुंग से प्राणों को छोड़ता है वह परब्रह्म को प्राप्त करता है। उस तीर्थ के ऊपरी भाग में दो योजन के आयाम में जो तीर्थ है उसका जल लाल और बुलबुल के आकार में निकलता है। यह जल परम गोपनीय है। इसी क्षेत्र में हिरण्यगर्भ नामक तीर्थ परम दुर्लभ है जिसके दर्शन मात्र से नर, नारायण हो जाता है। उसके उत्तर में एक उत्तम स्फटिक का शिवलिंग है जिसके पूजन से मनुष्य शिव ही हो जाता है!
उसके सात डग पूर्व में वह्गितीर्थ विधमान है बर्फ के भीतर गला हुआ उसका जल अग्निमय है घृताक्त आहुतियो से उसका पूजन करना चाहिए। अच्छी तरह तृप्त होने पर अग्नि अभिलाषित वर देता है। उसके उत्तर की तरफ परम आश्चर्य की वस्तु है, वहाँ पर्वत की चोटी से पृथ्वी पर जल गिरता है, उस जल के कण से मनुष्य मुक्त हो जाते हैं और उस जल के कण मोती बन जाते हैं, वही पर भीमसेन ने मोतियों से भगवान शंकर का पूजन किया था। वहाँ मोती - मूंगों के समूहों तथा प्रासादो की पंक्ति है, उस प्रासादो में गन्धर्व तथा अप्सराएँ हर्षनिर्भर होकर शिव का गायन करती है। उस क्षेत्र में पुण्यात्मा तथा महा बुद्धिमान लोग जाते हैं। उससे आगे महापथ है जहाँ जाने पर शोक नहीं होता है वहाँ की भूमि स्वर्णमयी और रत्नमयी है, वहाँ वृक्ष सुवर्णमय और मूंगों की लताओं से ढके है वही सात चहार दीवारियो से घिरा भगवान शंकर का धाम है, उस महापथ में भगवान शंकर नित्य निवास करते है! माध्वीगंगा नाम की जो क्षीर धारा मन्दाकिनी से मिलती है वह कार्तिकेय का प्रसिद्ध शिवलोकदायक महातीर्थ है उसमें स्नान करने से मनुष्य कैलाश भवन में वास करता है। क्षीर गंगा नाम की जो धारा मन्दाकिनी में मिलती है वह ब्राह्म नामक तीर्थ है जिसमें स्नान करके मनुष्य शंकर का गण हो जाता है। केदारपुरी के वामभाग में जो परम सुन्दर पर्वत है वह पौरन्दर नाम से विख्यात है वहाँ पहले इन्द्र ने अपनी स्थिति के लिए भगवान शंकर की आराधना की थी। केदारपुरी के दश दंड पर हंसकुण्ड है जो पितरों के लिए मोक्षदायक है उस तीर्थ में पितरों के श्राद्ध करने वाले लोग परम पद को प्राप्त करते है! केदारेश्वर का दर्शन कर लेने पर मनुष्य जहाँ कहीं भी मरता है अन्त में मोक्ष को प्राप्त होता है।