सोन पर्वत के आंचल में फैला धरती का स्वर्ग विसुणी ताल - लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ की खास रिपोर्ट

ऊखीमठ! देवभूमि उत्तराखंड में यदि आप किसी घाटी से चोटी की ओर चलेंगे तो पहले सीढ़ीनुमा खेत - खलिहान, गाँव, कस्बे, नदी, नाले, टेढे़, मेढे़ रास्ते आपको आनन्दित करेगें, फिर सघन वन सम्मोहित करेगें।करीब सात - आठ हजार फिट के ऊपर का सारा परिदृश्य बदला हुआ नजर आयेगा! पेड़ - पौधे गुम हो जायेगें और  नर्म - नाजुक मखमली घास का रुपहला विस्तार नजर आयेगा। यदि प्रकृति प्रेमी बरसात के आसपास, शरद ऋतु या बसन्त ऋतु तक इन ढलुवा मैदानों में आ जाते हैं तो रंग - बिरंगे सैकड़ों दुर्लभ फूल व बेशकीमती जडी़ - बूटियां हंसते - खिलखिलाते हुए मिलेगें। इस विशेष रेशमी घास, विभिन्न प्रजाति के फूलों व जडी़ - बूटियों के विस्तार को कहते हैं बुग्याल। वैसे तो देवभूमि उत्तराखंड में सुरम्य मखमली बुग्यालों की भरमार है मगर मदमहेश्वर घाटी के बुरुवा गाँव से लगभग 18 किमी दूर सोन पर्वत के आंचल में फैला भूभाग धरती का साक्षात स्वर्ग के समान है।



सोन पर्वत की तलहटी में ही बुग्यालों के मध्य विसुणी ताल विद्यमान है जिसका निर्माण स्वयं विष्णु भगवान ने किया था। प्रकृति के  अद्भुत खजाने विसुणी ताल पहुंचने के लिए अदम्य साहस व भगवत कृपा से ही पहुंचा जा सकता है, क्योंकि इस पैदल मार्ग पर अधिक चढ़ाई का सफर तय करना पड़ता है। मदमहेश्वर घाटी के बुरुवा गाँव से खढेलगौना- तेलगुणी- मरछपरा- दुबट्टा - टिगरी- तिनतोली - थौली- द्वारी - पंचद्यूली - सोनपुर होते हुए विसुणी ताल पहुंचा जा सकता है। मदमहेश्वर घाटी के गडगू गाँव व देवरिया ताल से भी विसुणी ताल पहुंचने के लिए पैदल मार्ग है।



लोक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु व लक्ष्मी जी कैलाश भ्रमण पर आये तो वे दोनों विचरण करते हुए सोनपुर पहुंचे तो वहा पर लक्ष्मी जी को प्यास लगी,लक्ष्मी जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने इस तालाब का निर्माण किया इसलिए इस तालाब का नाम विसुणी ताल पड़ा ।



विसुणी ताल के पवित्र जल से स्नान करने से चर्मरोग दूर हो जाते है। विसुणी ताल से देवथान होते हुए पाण्डव सेरा, नन्दी कुण्ड भी पहुंचा जा सकता है। बुरुवा गाँव से थौली तक का सफर वनाच्छादित भूभाग से तय करना पड़ता है तथा थौली से लेकर विसुणी ताल का सम्पूर्ण भूभाग को प्रकृति ने अपने विशेष सौन्दर्य से संवारा है। थौली से लेकर विसुणी ताल के भूभाग में  जया, विजया, कुखणी, माखुणी, अतीस जटामांसी, गरूडपंजा सहित असंख्य जडी़ - बूटियों के भण्डार भरे हुए है! लोकमता अनुसार अमावस्या की रात को कुछ जडी़ - बूटियां अपने आप प्रकाशमय हो जाती है। थौली से लेकर विसुणी ताल तक का क्षेत्र प्रकृति सुषमा से भरा हुआ है।इस भूभाग को अति निकट से निहारने पर आंखे चकाचौंध हो जाती है। पक्षियों में कौसी, मुन्याल तथा अनेक प्रजाति के पक्षियों के उड़ते स्वर्णिम पंखों का दर्शन, गुफाओं में भंवरों का मधुर गुंजन अत्यंत प्यारा लगता है। रीछ, सिंह, मृग, कस्तूरी मृग बाराह, थार, हिरण, आदि वन्य जन्तुओ के विचरण से मखमली बुग्यालों के वैभव की वृद्धि कर चार चांद लगा देते है। मखमली बुग्यालों में छह माह प्रवास करने वाले भेड़ पालको के अनुसार विशेष पर्वों पर इन्द्र की परियां विसुणी ताल में स्नान कर नृत्य करती है! विसुणी ताल के चारों तरफ ऐड़ी - आछरियो का वास सदैव रहता है।भाद्रपद मास में मौसम के साफ होने के बाद रात्रि को विसुणी ताल में चन्द्रमा की रोशनी ताल में दिखने पर ऐसा आभास होता है कि तालाब के जल ने सोने का रूप धारण कर लिया हो। दुनियावी शोर - शराबें से दूर विसुणी ताल के मखमली बुग्यालों को प्रकृति द्वारा प्रदान की गई सुरम्यता और घाटियों की शांत मनोरम गोद में जब हम पहुंचते हैं तो जैसे कुदरत का ही एक हिस्सा बनकर कुछ क्षणों के लिए आंखें विस्फारित रह जाती है! विसुणी ताल के ऊपरी छोर की चोटी सोनपुर के नाम से विख्यात है।



मान्यता है कि सोनपुर में युगों पूर्व एक भेड़ पालक ने अपनी कुल्हाड़ी जमीन में मारी थी तथा कुल्हाड़ी का जितना भाग जमीन में डूबा उतना हिस्सा सोने का हो गया था। सोनपुर के शीर्ष से चौखम्बा सहित हिमालय की चोटियों को अति निकट से देखा जा सकता है। सोनपुर के चारों तरफ अनेक प्रकार के फूलों को देखकर ऐसा आभास होता है कि समूची उपत्यका साक्षात नन्दन कानन में तब्दील हो गई है। सोनपुर के पावन वातावरण से मानव का अन्त:करण शुद्ध हो जाता है और उसे सांसारिक राग, द्वेष, घृणा, लोभ, क्रोध, अहंकार जैसे भावों पर विजय पाने की शक्ति मिलती है तथा परिणाम स्वरूप मानव में सत्य, स्नेह, इन्द्रिय निग्रह, संयम, पवित्रता, दान, दया और सन्तोष जैसे भावों का उदय होता है। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के वन दरोगा कुलदीप नेगी, ईश्वर सिंह कण्डारी, महेन्द्र सिंह नेगी, ललित मोहन बताते है कि विसुणी ताल को प्रकृति ने अपने अनूठे वैभवों का भरपूर दुलार दिया है। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् ने बताया कि विसुणी ताल के प्राकृतिक सौन्दर्य से रुबरु होना भगवत व प्रकृति की इच्छा पर निर्भर करता है। प्रधान गडगू बिक्रम सिंह नेगी, क्षेत्र पंचायत सदस्य लक्ष्मण राणा, जीत पाल सिंह, रायसिंह, वसुदेव सिंह, महावीर भटट्, सौरभ धिरवाण, अब्बल सिंह, विपिन नेगी संजय सिंह बताते है कि थौली से लेकर विसुणी ताल का क्षेत्र स्वर्ग के समान है!