भेड़ पालकों की लाई मेला सादगी के साथ संपन्न - लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ

ऊखीमठ! सुरम्य मखमली बुग्यालों में छह माह प्रवास करने वाले भेड़ पालकों का लाई मेला ऊंचाई वाले इलाकों में सादगी से मनाया गया‌। कोविड -19 के कारण इस बार सीमित संख्या में ग्रामीणों ने प्रतिभाग किया। लाई मेले के बाद भेड़ पालक पुनः बुग्यालों की ओर रवाना हो गये हैं तथा दीपावली के बाद भेड़ पालको के गाँव लौटने की परम्परा है।कई दशकों से चली आ रही परम्परा के अनुसार भेड़ पालक अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह से अपने गाँवों से सुरम्य मखमली बुग्यालों की ओर रवाना हो जाते हैं तथा भाद्रपद की पांच गते को लाई मेले की परम्परा है इसी परम्परा के तहत गुरुवार को भेड़ पालकों द्वारा बूढा मदमहेश्वर, काली शिला, पाली कांठा, पय्यालाल, टिगरी,चिलौण्ड, उनियाणा, रासी, गडगू सहित सीमान्त गाँवों के ऊपरी हिस्सों में लाई मेला सादगी से मनाया गया।



लाई मेले में मांगल गीतों के साथ भेडो़ की ऊन छंटाई व भेड़ पालकों के आपसी लेन - देन के भुगतान की परम्परा है। पूर्व की बात करें तो लाई मेले को लेकर भेड़ पालकों व ग्रामीणों में भारी उत्साह बना रहता था मगर इस वर्ष वैश्विक महामारी कोविड -19 के कारण भेड़ पालकों व ग्रामीणों में कम उत्साह देखा गया। लाई मेला शीत ऋतु का द्योतक भी माना जाता है। पौराणिक कहावत है कि लाई मेले के बाद सर्दी शुरू हो जाती है। लाई मेले के आयोजन के बाद भेड़ पालक पुनः बुग्यालों की ओर चले जाते हैं तथा छह माह प्रवास के बाद दीपावली को गाँव लौटने की परम्परा है। भेड़ पालक प्रेम सिंह बताते हैं कि पूर्व लाई मेले के आयोजन को लेकर भेड़ पालकों व ग्रामीणों में भारी उत्साह बना रहता था मगर धीरे - धीरे भेड़ पालन व्यवसाय कम होने से लाई मेले की रौनक भी गायब होने लग गयी है।



\भेड़ पालक बीरेन्द्र सिंह बताते है कि भेड़ पालक के लाई मेले से पूर्व दाती त्यौहार मनाने की परम्परा है ।जिला पंचायत सदस्य विनोद राणा ने बताया कि लाई मेला भेड़ पालको का मुख्य त्यौहार है तथा आने वाले समय में लाई मेले को भव्य रूप देने के प्रयास किये जायेंगे। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् का कहना है कि लाई त्यौहार भेड़ पालकों का ऊन छटाई का त्यौहार है मगर भेड़ों की ऊन का विपणन न होने से भेड़ पालकों को खासा नुकसान होता है! प्रकृति प्रेमी हरेन्द्र खोयाल बताते है कि लाई मेले के दिन ग्रामीण व रिश्तेदार भेड़ पालकों को खाद्य सामग्री ककड़ी, मक्का व घरों में उगी नई सब्जी को पहुँचाने की परम्परा आज भी कायम है।


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