उर्गम घाटी में भगवती गौरा व नन्दा स्वनूल को मायके बुलाने की परम्परा है। जिसकी शुरूवात गौरा मंदिर से होती है, यहाँ हर वर्ष भगवती गौरा का विवाह चैत वैशाख महीने की नवमी तिथि को भगवती गौरा का विवाह कैलाश वासी शिव के साथ होता है और भगवती गौरा को समझा बुझा कर शिव के साथ भूमि क्षेत्र व भगवती गौरा के मैती भल्ला वंशज के लोग जागरों के साथ कैलाश के साथ इस आशा के साथ विदा करते हैं कि जब आली भादों की दूज तिथि लालडी तैवे तै बुलाला मैत अर्थात हे बेटी जब भादों महीने की द्धितीय तिथि आयेगी तो हम तुझे बुलाने तेरे कैलाश जरूर आयेंगे। बेटी को दिये गये वचन को निभाने के लिए भल्ला वंशज के नेगी परिवार जिनकी कुलदेवी है गौरा नंगे पाव भगवती के कटार कंडी छतोली लेकर भगवती को बुलाने जाते है शाम तीन बजे गौरीजौत भगवती का जात यात्री फ्यूलानारायण मंदिर में रात्रि विश्राम करता है।
जहाँ रात्रि को जागर गाये जाते है पूजा अर्चना होती है और सुबह तड़के रोखनी बुग्याल पहुंचते हैं जो कि फ्यूलानारायण से 7 किमी दूर है। वहाँ पहुंकर जात होती है एवं भगवती का आह्वान किया जाता है। ब्रह्मकमल लेकर फ्यूलानारायण पहुंचते हैं कहा जाता है कि भगवती गौरा भंवरे के रूप में ब्रह्मकमल के अन्दर आती है जो बहुत कम लोगों को दिखाई देती है।भगवान फ्यूलानारायण भगवती गौरा के धर्मभाई हैं वहाँ नारायण का प्रसाद ग्रहण करती है मिलन और नारायण से विदा होने का दृष्य भावुक होता है। आंखो से नीर बहने लगता है क्योंकि इस दिन से फ्यूलानारायण के कपाट बंद होने की परम्पराये शुरू होती है और शाम चार बजे वहाँ से अपने मायके देवग्राम पहुंचती ह। वहाँ फूलकोठा उत्सव होता है भगवती गौरा को ब्रह्मकमल से सजाया जाता है भक्तों को प्रसाद वितरण किया जाता है।