बड़ा मुश्किल हुआ यारों ज़माने को समझ पाना, इसे वो ही समझ सकता कि जिसने खामियाँ झेली - सुनीता सेमवाल "ख्याति" 

विषय - छलकते अश्क
विधा-गजल 
बहर - 1222, 1222, 1222, 1222 
काफिया - आ स्वर 
रदीफ - झेली


अमीरी ने गरीबी से सदा अठखेलियाँ खेली।
छलकते अश्क कहते हैं बड़ी दुश्वारियाँ झेली।


जमाना ये सदा से ही सताता है उसी को जो।
कि जिस ने आग से खेला सदा ही आँधियाँ झेली।


बड़ा मुश्किल हुआ यारों ज़माने को समझ पाना।
इसे वो ही समझ सकता कि जिसने खामियाँ झेली।-


हजारों की नुमाइश है मगर इंसानियत गुम है।
कि अब जिंदा वही जग में कि जिसने गालियाँ झेली।


परिंदों की उड़ानें भी कभी होती नहीं पूरी।
मगर उसने उड़ानों की सभी बारीकियाँ झेली।


कभी जो गुफ्तगू होते कहीं सुन लो किसी से तुम।
उठेगी जीत की जिद फिर अगर चालाकियाँ झेली।


गिराया फिर उठा कर के कई अपने यही बोले।
छलकते अश्क से हमने बड़ी नाकामियाँ झेली।


नजर के सामने बीता मगर फिर भी न कुछ बोले।
यही हँसकर कहा हमने चलो नादानियाँ झेली।



 


स्वरचित 
सुनीता सेमवाल "ख्याति" 
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड