जय मां नन्दा राज राजेश्वरी
प्रकृति की अद्भुत सुन्दरता से परिपूर्ण देव भूमि के नाम से विख्यात भारत का एक ऐसा राज्य उत्तराखण्ड जिसके कण-कण में परम पिता परमेश्वर का वास है। जिसकी सुन्दरता की कल्पना न तो हम शब्दों में कर सकते है और न ही भावों में ही कर सकते हैं।
उत्तराखण्ड की सबसे मान्य देवी माँ नन्दा देवी की पूजा देवभूमि के अलग-अलग स्थानों में अलग - अलग रूपों में की जाती है।कोई माँ नन्दा को अपनी बेटी के रूप में पूजता है तो कोई माँ को अपनी बहु के रूप में पूजता है। वैसे तो माँ नन्दा देवी के मंदिर देव भूमि में कई स्थानों पर स्थित हैं
तथा माँ नन्दा देवी से जुडी कई ऐसी पौराणिक कथाऐं हैं जो सदियों से चली आ रही हैं।ऐसे ही माँ नन्दा देवी का एक प्रचीन मंदिर चमोली जिले के कुरूड़ गाँव में स्थित है।
वर्तमान में इसे नन्दा धाम के नाम से जाना जाता है।जहाँ
माँ की स्वयंभूः शिला मूर्ति स्थित है तथा शिला मूर्ति से जुडी़
पौराणिक कई ऐसी कथाऐं भी है जो मां नन्दा के शक्ति स्वरूपा महात्म्य को दर्शाती हैं। मंदिर गर्भ में शिला मूर्ति के दायीं ओर माँ नन्दा देवी की स्वर्ण मूर्ति अपने सिहांसन के साथ तथा बायीं ओर माँ राजराजेश्वरी की स्वर्ण मूर्ति स्थित है तथा मुख्य द्वार पर माँ की सवारी शेर की शिला मूर्ति स्थित है व बायीं ओर नन्दा माँ के भाई लाटू देवता की चौकी है।कहा जाता है कि नन्दा राजजात यात्रा के दौरान लाटू देवता नन्दा माँ की अगवायी करता है। मंदिर के पीछे एक सूराई का प्राचीन पेड़ है और मुख्य द्वार पर एक हवन कुण्ड है। इस धामसे जुड़ी कई पौराणिक कथाऐं प्रचलित हैं।
माँ नन्दा राजराजेश्वरी देवी माँ की पूजा प्रतिदिन दशोली तथा बधाण के पुजारी के द्वारा की जाती हैं तथा माँ को भोग के रूप में प्रतिदिन गुलगुले का भोग लगाया जाता है।हर साल भाद्र माह में माँ नन्दा देवी राजराजेश्वरी माँ की लोकजात यात्रा की जाती है जिसमें नन्दा माँ को स्थानीय लोगों के द्वारा ससुराल यानि कि कैलाश भेजा जाता है।यात्रा में माँ नन्दा राजराजेश्वरी की डोली दशोली तथा बधाण के विभिन्न क्षेत्र से होते हुए कैलाश को जाती है।जिसमें स्थानीय लोग माँ को अपनी बेटी के रुप में पूजते हैं और फिर मायके से ससुराल भेजने के लिए विभिन्न प्रकार की तैयारी करते हैं ठीक उसी तरह नन्दा माँ को भी स्थानीय लोगों के द्वारा अनेकों प्रकार के साजो समान के साथ जैसे कंदमूल फल, स्थानीय फल आदि के साथ कैलाश के लिए विदा करते हैं।
साथ ही माँ की स्तुति के रूप में पौराणिक जागरों तथा गीतों
से सुःख समृद्धि की कामना चाहते है।हर साल नन्दा धाम कुरुड में तीन दिवसीय लोक जात मेले का आयोजन भी किया जाता है। जिसमें स्थानीय लोगों के द्वारा बढ़ - चढ़ के प्रतिभाग भी किया जाता है। अनेक प्रतियोगिताओं के साथ खेल-कूद से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी दी जाती है तथा यहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार की संस्कृति सामने आती है। मां नन्दा लोकजात के तहत प्रत्येक 12 वर्ष में हिमालय महाकुंभ का आयोजन होता है जिसमें
देशी तथा विदेशी श्रद्धालु माँ की यात्रा को भव्य रुप देते हैं।
बढ़ -चढ कर प्रकृति के अद्भुत रूप को निहारने के लिए आते हैं। नन्दा की लोक जात्रा का समापन नन्दा सप्तमी को बाल्पाटा तथा वेदनी में होता है। कहा जाता है कि इसी दिन माँ का विवाह महादेव के साथ हुआ था।
नवीन चन्द्र (रिंकेश) }
नन्दा धाम कुरुड