विषय- कैदी कलम
विधा - छंद मुक्त
बिकने लगी कलम ये जबसे माया के बाजार में।
कैदी कलम की ताकत हो गई तब से इस संसार में।।
जबसे कलम झूठ के परदे से सच्चाई को ढक रही।
तब से हर सच्चाई छुपकर किसी कोने में सिसक रही।।
पल पल अपने जीवन को जो मृत्यु से मिलवाते थे।
कहांँ गए वो वीर कलम के जो सच्ची बात उठाते थे।।
क्यों समाज में झूठी अफवाहों का पारा चढ़ा।
कैदी कलम क्यों हो गई क्यों झूठ का दबदबा बढ़ा।।
किसने चुप करवाया उनको क्यों कलम मजबूर हुई।
क्यों ऐसे कलम की ताकत से बदमाशी मशहूर हुई।।
कलम चलाने वालों सुन लो तुम ऐसे कलमवीर बनो।
जो झूठ को बेनकाब कर दे तुम ऐसे कर्मवीर बनो।।
कलम नहीं गुलाम किसी की कलम तो जग की रानी है।
सदियों से अधर्म मिटाने की कलम ने ही तो ठानी है।।
जी खोलकर कलम कहेगी जग की
सच्ची बातें जब।
दोषियों में खौफ बढ़ेगा रुकेंगी वारदातें तब।।
कैदी कलम के बंधन खोलो सच्चाई उसको लिखने दो।
जो जैसा है उसी रूप में सारे जग को दिखने दो।।
स्वरचित
सुनीता सेमवाल "ख्याति"
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड