मलिन मन हुए मनुजों से दुःखी हुई, अमृत सम अपना जल सुखाती नदियाँ:- ज्योति बिष्ट ' जिज्ञासा '

*नदियाँ *


उत्तुंग शिखरों से,लहराती हुई,
आती धरा पर चंचल सरिता ।


निज उज्ज्वल मुक्ता सम जल से,
प्रिय वसुधा को सजाती नदियाँ।


छलछल,कलकल ध्वनि करती हुई,
हर बाधाओं से टकराती सरिता।


शुद्ध,दूधिया अँचल फैलाती हुई,
अविरल अमृत धार लाती नदियाँ।


अपार स्नेह संग,खेतों को सींचती हुई,
सुहास बह,कृषक दुःख मिटाती सरिता।


मलिन मन हुए मनुजों से दुःखी हुई,
अमृत सम अपना जल सुखाती नदियाँ।


स्वरचित
ज्योति बिष्ट ' जिज्ञासा '
गोपेश्वर,चमोली।