वृंदा की माला बनी होता वेदों का पाठ, तीन लोक स्तुति करें खुल जाएं दिव्य कपाट - किरन पुरोहित " हिमपुत्री"

 


दिव्य कपाट 


 
         || जय बद्री विशाल ||



 भक्ति सिंधु में डूब रहा,
           भू   - वैकुंठधाम |
 करती दिव्य प्रभात है,
   नारायण को प्रणाम ||


 नीलमणि सी चमक रही,
 नीलकंठ की चोटी |
 मधुर सुपावन ज्योत्सना,
 अखंड ज्योति की होती |


भक्ति सिंधु में......... 


 पंचामृत सी बह रही, 
 अलखनंद की धार |
 उत्साह गर्म है तप्त कुंड में ,
 मोक्ष है ब्रह्म कपाल |


 भक्ति सिंधु में......


 शेष नेत्र से शेष जी, 
 देख रहे अविराम |
 मांगल गाती हैं हिम पुत्री,
 धन्य नयन अभिराम |


 भक्ति सिंधु में......


 वृंदा की माला बनी,
 होता वेदों का पाठ |
 तीन लोक स्तुति करें ,
 खुल जाएं दिव्य कपाट |


 भक्ति सिंधु में.......


 घृत कंबल ओढ़े प्रभु,
 बैठ रमा के संग |
 सुनते ढोल दमाऊ के स्वर,
 श्रुतियां और मृदंग |


 भक्ति सिंधु में......



 नर नारायण श्रृंखला,
 स्वर्गारोहिणी खिलखिला |
 क्षण क्षण गिनती जाती है ,
 पलके फिरती जाती हैं |


 भक्ति सिंधु में.......



 श्रद्धालु द्वारे आते हैं ,
 जय कार सहस्त्र लगाते हैं |
 छह मास पूज देवता चले ,
 अब मनुज पूजने आते हैं |


 भक्ति सिंधु में......


 शुभ समय निकट तब है आता ,
 पल में आनंद का भाव समाता |
 ब्रह्म वेद उच्चारण होता ,
 कण-कण श्रीमन नारायण गाता |


 भक्ति सिंधु में.......


 रावल जी तब आते हैं ,
 शुभ क्षण कपाट खुल जाते हैं |
 लक्ष्मी निज विग्रह जाती हैं, 
 उत्सव डोली गृह आती है |


 भक्ति सिंधु में........


 बद्री पंचायत  स्थापित होती ,
 भक्त निरख छवि जाए निहाल ,
 कहते हैं आदित्य मरुत सब ,
 जय जय जय बद्री विशाल |


 भक्ति सिंधु में......


 खुलते हैं जब धाम के ,
 अद्भुत दिव्य कपाट |
 करते हैं तब देव स्वयं ,
 श्री प्रभु कृपा का पाठ |
 
 भक्ति सिंधु में ......


हिमपुत्री कहती नाथ का ,
  सुंदर मोहक रूप ,
 सदा रखो प्रभु नाथ जी |
 जग पर स्नेह की धूप


     ||जय बद्री विशाल||



  • किरन पुरोहित "हिमपुत्री"