* प्रीत *
बादलों की प्रीत है ये,जो धरा से आ मिले।
चूमते बन बूँद भू को,दूर कर सारे गिले।।
खोलती है बाँह भू भी,प्रेम में हो चंचला।
प्रीत मेघों की ही है,धरणी जो हँस के खिले।।
सृष्टि संग जन्मी है,ये प्रीत बहुत पुरानी है।
बहता भू के अंतर में,मेघों का पानी है।
उर में सदा ही मेघों का,विपुल नेह छिपाए।
हरियाली को ओढे़,रहती वसुधा रानी है।।
स्वरचित
- ज्योति बिष्ट' जिज्ञासा'
चमोली गढ़वाल उत्तराखंड