मिनी स्विट्ज़रलैंड चोपता में भगवान तुंगनाथ का दिव्य व पावन तीर्थ स्थित है - ऊखीमठ से लक्ष्मण नेगी की खास रिपोर्ट! चमोली व रुद्रप्रयाग की सीमा पर तथा कुण्ड - चोपता - गोपेश्वर मोटर मार्ग पर मिनी स्वीजरलैण्ड के नाम से विख्यात खूबसूरत हिल स्टेशन चोपता से तीन किमी दूर पूरब दिशा में रावण व चन्द्र शिला के मध्य भगवान तुंगनाथ का दिव्य व पावन तीर्थ है, जिसे तृतीय केदार के नाम से जाना जाता है। इस तीर्थ में भगवान शंकर के भुजाओं की पूजा होती है! देवभूमि उत्तराखंड के चार धामों की तर्ज़ पर भगवान तुगनाथ की ग्रीष्मकालीन पूजा तुंगनाथ धाम तथ शीतकालीन पूजा शीतकालीन गद्दी स्थल मार्कडेय तीर्थ मक्कूमठ में होती है। तुगनाथ धाम उत्तराखंड के सभी तीर्थों की तुलना सबसे अधिक ऊचांई पर विराजमान है! यहाँ से हिमालय की चमचमाती स्वेत चादर के साथ प्रकृति के अद्दभुत नजारों का दृश्यावलोकन एक साथ किया जा सकता है।चन्द्र शिला के शीर्ष पर पतित पावनी दुख तारिणी गंगा मैया के मन्दिर में भी पूजा - अर्चना का विधान है! भगवान तुगनाथ जनपद चमोली की हापला, जनपद रुद्रप्रयाग की क्यूजा व तुगनाथ घाटियों के ग्रामीणों के अराध्य देव माने जाते है। शीतकाल में भगवान तुगनाथ के दर्शन शीतकालीन गद्दी स्थल मार्कडेय तीर्थ मक्कूमठ में किये जा सकते है। लोक मान्यताओं के अनुसार चन्द्र शिला शिखर पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी ने व रावण शिला पर लंकाधिपति रावण ने तपस्या की थी! तुंगनाथ धाम की महिमा का वर्णन शिव पुराण के केदारखण्ड के अध्याय 47 के श्लोक संख्या 1 से लेकर 49 तक विस्तार से किया गया है! केदारखण्ड श्लोक संख्या 1 में वर्णित है कि ------ महादेव - पार्वती से बोले ------- तुंगेश्वर महा क्षेत्र के बारे में मैं कह रहा हूँ, जिसके सुनने से मनुष्य सभी पापों से नि:सन्देह मुक्त हो जाते हैं! हे देवेश्वरि पार्वती! यहाँ शिवभक्ति देने वाले जो तीर्थ है उन्हें भी संक्षेप में सुनो, मान्धाता क्षेत्र के दक्षिण दिशा में दो योजन चौड़ा व दो योजन लम्बा पापनाशक तथा सकलकामनादायक तुंगनाथ नामक पवित्र क्षेत्र है। जिसके दर्शन से मनुष्य पापमुक्त होकर शिव को प्राप्त करता है। जो तुंगनाथ नामक मेरे लिंग का पूजन करता है उस महात्मा के लिए तीनों लोकों मे कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है। क्योंकि उस तीर्थ में ब्रह्म आदि देवता सदा देवो के देव महात्मा महेश्वर की स्तुति करते हैं! प्रिये --- देवी ---- जो मेरे लिंग पर जल मात्र देता है, उस जल के जितने कण लिंग पर पड़ते है उतने हजार वर्षों तक वह शिव लोक में पूजित होता है! महेश्वरि जो बिल्वपत्र लेकर शिव का पूजन करता है वह शिवलोक में एक कल्प तक वास करता है मेरे स्वयं भू लिंग पर जितने अक्षत चढ़ाये जाते हैं उतने हजार वर्षों तक वह मेरे लोक में प्रतिष्ठित होता है! जितने पुष्प मेरे ऊपर अर्पित किये जाते है उतने हजार वर्षों तक मनुष्य स्वर्ग में वास करता है! जो मनुष्य धूप, दीप देता है वह नरकगामी नहीं होता है! जो विधिध प्रकार का नैवेद्य मुझे भक्तिपूर्वक अर्पण करता है वह हजार जन्मों तक तुच्छ भोजन नहीं करता है। जो भक्तिपूर्वक मेरा पूजन करके दक्षिणा देता है वह हजार जन्मों तक दरिद्र नहीं होता है! सुन्दरि----- यह प्रत्येक पूजा का फल तुम्हे बता दिया! शिवे, महेश्वरी ----- जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक व विधिपूर्वक तुगेश्वर का पूजन करता है वह करोड़ों कल्पों तक मेरे शिवलोक में वास करता है, जो कोई मानव तुंगनाथ क्षेत्र में भक्ति से प्राणों का त्याग करता है उसकी हड्डियां जितने दिनों तक उस क्षेत्र में रहती है उतने हजार युगों तक वह शिव लोक में पूजित होता है। हे देवी पार्वती ----- जो मानव एक बार भी तुंगक्षेत्र के दर्शन कर लेते हैं, वे किसी भी प्रदेश में मरने पर परम गति को प्राप्त करते है! लोक मान्यताओं के अनुसार आज भी तुंगनाथ धाम में पित्रों की हड्डियां विसर्जित करने की परम्परा है! तुंगनाथ धाम की तलहटी में सुरम्य मखमली बुग्यालों की भरमार है! पंच केदारों में भगवान तुंगनाथ ही एक ऐसे देवता है जिनकी समय - समय पर दिवारा यात्रा का आयोजन किया जाता है। भगवान तुंगनाथ की दिवारा यात्रा का आयोजन देव स्थानम् बोर्ड, तीर्थ पुरोहित समाज, हक- हकूखधारियों व दिवारा यात्रा समिति के आपसी सामंजस्य से किया जाता है तथा भगवान तुगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली समय - समय पर दिवारा यात्रा के तहतक्षचारो दिशाओं का भ्रमण कर धियाणियो व ग्रामीणों को आशीष देती है : दिवारा यात्रा के समापन पर महायज्ञ व शाहीभोज की परम्परा भी प्राचीन है। जो मानव भक्ति पूर्वक भगवान तुंगनाथ के श्रीचरणों में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है!
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