ऊखीमठ : चैत्र- वैशाख मास में गांवों में होने वाले पौराणिक नृत्यों का आयोजन कोरोना वायरस के लाॅक डाऊन के कारण इस बार नहीं हो पाये हैं जिससेे पौराणिक धरोहर यादों में कैद रह गयी हैं ! बता दें कि केदारघाटी के अधिकांश गाँवों में चैत्र मास भर हर नाग,सिद्धवा,ऐडी, आछरी, सिद्वावारमोला नृत्यों का आयोजन कर हर घर व गाँव का माहौल भक्तिमय बना रहता था! इन नृत्यों में मांगल व पौराणिक जागरो से तैतीस करोड़ देवी - देवताओं की स्तुति कर विश्व कल्याण की कामना की जाती थी तथा उत्तराखण्ड के प्रवेश द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा तक भ्रमण का आह्वान किया जाता था। मगर इस बार कोरोना वायरस का लाॅक डाऊन होने से इन नृत्यों का आयोजन यादों में कैद हो गया है। परिणाम स्वरूप चैत्र - वैशाख मास में जिन गावों में पौराणिक नृत्यों के आयोजन को लेकर रौनक बनी रहती थी उन गावों में सन्नाटा पसरा हुआ है। लोक मान्यताओं के अनुसार इन नृत्यों में पौराणिक जागरों के माध्यम से सिद्धवा व रमोला,दोनों भाईयों के जीवन का वृतान्त सुनाये जाने की परम्परा है। ऐडी आछरी नृत्य में नौ बहिनें आछरी व बारह बहिनें भराडी की महिमा का गुणगान किया जाता है ये सभी इन्द्र की परियाँ हैं! इन नृत्यों के अलावा नाग नृत्य में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को नृत्यों में बड़ी मार्मिकता से दिखाया जाता है, नाग नृत्य में भगवान श्री कृष्ण का माखन चौरी करना, जमुना जी के किनारे गेंद खेलना तथा गोपीयों के साथ रास लीला करने का वृतान्त जागरों के माध्यम से सुनाये जाने की परम्परा है। तेरी नागू सेना को मेरा प्रभु पौदू च पल्लाण ( नागो सेना का परिवार बहुत बड़ा है), खेलदू खेलदू पताल पहुंचे, ( खेलते - खेलते पाताल पहुंचना) जैसे करुणामयी जागरों की प्रस्तुति पर हर एक का मन भाव विभोर हो जाना स्वाभाविक ही है! इन नृत्यों के समापन पर रथ ( चोलाई के खील, काली दाल, अनेक प्रकार के पुष्प व जलता दीपक) विसर्जित करनी की परम्परा है। आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल बताते हैं कि केदारघाटी में नाग सिद्धवा ग्रामीणों के कुल देवता के रूप में पूजे जाते हैं, जबकि ऐडी आछरी नृत्य का आयोजन दोषमुक्त के लिए किया जाता है! जिला पंचायत सदस्य परकण्डी रीना बिष्ट ने बताया कि इस बार चैत्र मास में कोरोना वायरस का लाॅक डाऊन होने से इन नृत्यों का आयोजन नहीं हो पाया है। क्षेत्र पंचायत सदस्य घिमतोली अर्जुन सिंह नेगी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में इन नृत्यों की परम्परा प्राचीन है तथा भविष्य में भी इनके संरक्षण व संवर्धन के सामूहिक पहल होने चाहिए!
लॉक डाउन के चलते इस बार चैत्र - वैसाख मास में गांवों में होने वाले पौराणिक नृत्यों का आयोजन नहीं हो पाया, पौराणिक धरोहर यादों में ही कैद रह गयी! - लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ