"गुलिस्ता कहानी"
लिखूँ कैसे साथी ,गुलिस्ता कहानी ।
कहूँ कैसे साथी कि ,ऋतु ये सुहानी ।।
हुई आज बेचैन माँ भारती है ।
ढूँढ़ रही वह किशन सारथी है ।।
कलंकित न हो ये ममता की गोदी ।
बुझे ना घरों की अमर जान ज्योती ।।
वो पूत संकट मोचन, पुकारती है ।
हुई आज बेचैन माँ भारती है ।।
हुये बन्द हैं आज देवों के द्वारे ।
ढके जलधरों से गगन के सितारे ।।
सूनी दिशायें, सूनी हैं राहें ।
मिलने को आतुर बंदी ये बाँहें ।।
बन्दी बनाकर चले महारथी हैं ।
हुई आज बेचैन माँ भारती है ।।
महाकाल को वह चली है जगाने ।
लगी है समाधि से उनको हिलाने ।।
खोलो नयन हे त्रिनेत्र धारी ।
संकट खड़ा है विपदा है भारी ।।
घुँघरू के थापों को झंकारती है ।
हुई आज बेचैन माँ भारती है ।।
लिखूँ कैसे साथी गुलिस्ता कहानी ।
कहूँ कैसे साथी ये ऋतु है सुहानी ।।
रोशनी पोखरियाल
चमोली उत्तराखण्ड