घर की रोनक थे लाडले बूढ़ों का मान भी होता था, पास पड़ोस में था प्रेम अतिथि सम्मान भी होता था - सुनीता सेमवाल

मधुर स्मृतियां


दो कमरों का घर था मेरा,और हाँ दो में बुनियाद थी।
एक  टी ०वी ० शटर वाला था, जिससे रौनकें आबाद थी।
कहाँ गये वो कंचे बट्टी, और लंगडी़ टाँग का खेल।
कैन्डी क्रश, पबजी से बेहतर, उन सब खेलों में बात थी। 1
                      
माना अब  विकास कर लिया,पर बहुत कुछ पीछे छूट गया।
राजा रानी परिजाद की, मोबाइल कहानी लूट गया।
रामायण की चौपाईयाँ, और रेडियो पर समाचार।
वो  नातों  का अपनापन, क्यों  शीशे  के  जैसे टूट गया? 2


वो रविवार की रंगोली, रूकावट में खेद आना ।
मोगली मे झिलमिल आये, और छत पर एंटिना हिलाना।
एक अकेला दूरदर्शन, सारे मनोरंजन करता था।
हांँ याद आता है मुझको, अब वो गुजरा बीता जमाना। 3
                  
हांँ विज्ञान बढा  आगे पर, पीछे क्यों छूट गये  संस्कार?
निजी दावतें चमक गई, और फीके पड़े सभी त्यौहार।
वो लूडो की बाजी में जब, जीत की गोटी पिछड़ती थी ।
खो गए सभी पल सुनहरे, जब संग हंँसता था परिवार 4
                      
घर की रौनक थे लाडले  बूढ़ों का मान  भी होता था।
पास - पड़ोस में था प्रेम, अतिथि
सम्मान भी होता था।
फिर आज क्यों अपने तक सीमित सारे समझदार बन गए?
प्रसिद्धि के साथ  पहले तो, भावुक इंसान भी होता था। 5
                      
वो  गुड्डे गुड़िया की शादी में, जब नाचती बारात थी।
माँ बाँटती  थी गुलगुले, और खेलती हमारे साथ थी।
वो  शादी  में ऑर्केस्ट्रा, गाने  वो  टेप रिकॉर्डर पर।
सुनो साथियों ये कहानी, हांँ हांँ सन् नब्बे की बात थी। 6
                      
नहीं है ये विकास बुरा, हाँ लोगों  इससे कुछ सीखो तुम।
क्या हैं विज्ञान के फायदे ? हांँ ये बतलाओ सभी को तुम।
खेल खेलने हैं तुम्हें, तो सेहत और दिमाग के खेलो।
पजल और पहेलियांँ खेलो, और सुलझाओ उसी को तुम। 7


 स्व रचित
सुनीता सेमवाल
 ( रूद्रप्रयाग उत्तराखंड)