आखिर अपनी ही मिट्टी याद उसे है आयी, रो लेंगे मां से लिपटकर जज़्बात बदल रहा है - शशि देवली

🌹बेबस मजदूर🌹



अखण्ड भारत का चेहरा
जाने क्यों बदल रहा है
हर इंसा बेबसी में आज
इंसानों से लड़ रहा है।


मजबूर हालातों को 
स्वीकार करे वो ऐसे
मीलों सड़कों को नाप
पैदल वो चल रहा है।


मजदूर है वो लाचार
खौफ में वो जी रहा 
गठरी सर पर रखकर
बेहिसाब लड़ रहा है।


निकला था रोटी कमाने
गरीबी का कलंक मिटाने
शहरों की चकाचौंध में खोकर
बेगाना सा बन रहा है।


अनायास आयी बेकारी
मजबूर हुआ मजदूर है
सहमा - सहमा सा होकर
हर पल अब खल रहा है।


कब तक जियेगा कोई
गैरों से आस लगाकर
लौटेंगे अपने घरों को
इसी आस में पल रहा है।


आखिर अपनी ही मिट्टी
याद उसे है आयी
रो लेंगे मां से लिपटकर
जज़्बात बदल रहा है।


अखण्ड भारत का चेहरा
जाने क्यों बदल रहा है।
जाने क्यों बदल रहा है।



शशि देवली
गोपेश्वर चमोली उत्तराखण्ड