मन की बात
एक बात थी मन मैं जो उस तक पहुँचानी थी
जो कहते कहते थक सी गयी बस उसे समझानी थी
इक्तदाब से अंजाम तक बस उसे रूबरू करानी थी
हर एक बात की बात से बयाँ कर बस उसे समझानी थी।
महीने यूँही बीतते गये और दिनों का जवाब नही
वो बात मन से ओझल हो गयी अब उसका भी पता नही
औदा किसका क्या था वक़्त पर कभी इक्तला किया नही
अब तो वक़्त ही सब मिटा गया इतना की जिसका हिसाब नही।
आज वक़्त मिला था वो मन की बात कह जाने का
इतना ही नही वक़्त इतना की हर एक दास्ताँ सुनाने का
पर आज मन ही मन को रोक गया जो कभी शायद उसे बतानी थी,वो मन की बात मन मैं दफन हो गयी जो उसे रूबरू करानी थी।
अब ना उससे राब्ता है कोई ना ही उस बात से कोई वास्ता
ना किसी से कोई गिला और ना ही सुनानी है किसे दास्ताँ
बस अब मन की एक ही बात है जो सबको कह जाती हूँ
की अब मन मैं एक भी बात नही इस बात से इक्तला सबको कराती हूँ।
- श्रुति तिवारी (गोपेश्वर)