जिला पंचायत सदस्य रीना बिष्ट ने किया सारी गांव में क्रिकेट मैच का उद्घाटन - लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ

 ऊखीमठ : स्व.लक्ष्मण सिंह की पुण्य स्मृति में उनके भाई जसवीर सिंह द्वारा पर्यटक गांव सारी में युमंद, ममंद व देख-रेख समिति के सहयोग से  मैमोरियल क्रिकेट टूर्नामेंट का विधिवत शुभारंभ हुआ।प्रतियोगिता का उद्घाटन मैच करोखी व मस्तूरा (दैडा) के बीच खेला गया। ।  


 सारी गांव के जी.डी. (गरणा धिस्वाल ) खेल मैदान में आयोजित किक्रेट प्रतियोगिता के शुभारम्भ अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि जिला पंचायत सदस्य  परकण्डी रीना बिष्ट  ने कहा कि ग्रीमीण क्षेत्रों में किक्रेट प्रतियोगिताओं से क्षेत्र के उभरते खिलाड़ियों को आगे बढ़ने का मौका मिलता है। उन्होंने स्व. लक्ष्मण सिंह के चित्र पर माल्यार्पण भी किया। कहा कि विकास कार्यों के अलावा व्यक्तिगत समस्याओं के निराकरण के लिए भी वह तत्पर रहेंगी। युमंद के खेल मैदान के निर्माण हेतु धन की मांग पर कहा कि वह इसके लिए हर संभव प्रयास करेगी।  उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए बीडीसी सदस्य गणेश लाल ने कहा कि युमंद व ग्रामीणों के सयुक्त प्रयासों से स्व. लक्ष्मण सिंह  मैमोरियल क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया गया  है।   प्रतियोगिता के शो मैच में करोखी ने टांस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए निर्धारित 10 ओवरों में 4 विकेट खोकर 120 रनों का लक्ष्य रखा जिसका पीछा करते हुए मस्तूरा (दैडा) ने 8 वें ओवर की दूसरी गेंद में 5 विकेट खोकर लक्ष्य को हासिल किया। वहीं दूसरा मैच उषाडा बी टीम व बेडुला के बीच खेला जा रहा था।समिति के अध्यक्ष, अरविंद नेगी ने सभी अथितियो का आभार व्यक्त किया । उन्होंने बताया कि  विजेता, उप विजेता, अनुशासित टीम को आकर्षक ट्राफी व नगद पुरस्कार देकर सम्मानित किया जायेगा। युमंद अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह भट्ट ने अतिथियों का स्वागत करते हुए धन्यवाद ज्ञापित  किया।   इस मौके पर उप प्रधान अनीता देवी, ग्राम पंचायत वार्ड सदस्य बिनीता, पूर्व अध्यक्ष ममंद प्रेमा देवी, सा.का. दिलवर सिंह नेगी, बलवंत सिंह, दिवान सिंह, भरत सिंह, प्रदीप, बलवीर, पृथ्वी सिंह, सहित ग्रामीण व टीमों के खिलाड़ी मौजूद थे।

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काली शिला की पूजा-अर्चना से मनुष्य को अभीष्ट फल मिलता है - ऊखीमठ से लक्ष्मण नेगी की खास रिपोर्ट : ऊखीमठ - देवभूमि उत्तराखंड की पावन धरती धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से साधना के क्षेत्र में अपना सर्वोत्कृष्ट स्थान रखती है, वास्तव में सिद्धि पाने के लिए साधना सदा शान्त, एकान्त और सिद्ध स्थलों में ही लाभप्रद होती है। वेदव्यास की चिन्तन भूमि, पाण्डवों का स्वर्गारोहण, उद्वव की तपस्थली, राजा भगीरथ की साधना स्थली, आदिगुरु शंकराचार्य को प्रेरणा देने वाली और महाकवि कालिदास को जन्म देकर विश्व विख्यात बनाने वाली यह हिमालय की पावन धरती है, इसलिए हिमालय के उत्तराखण्ड को तपस्या के लिए सभी तपस्वियों ने चयन किया है। देवभूमि उत्तराखंड वास्तव में ऐसी मुख्य रमणीक देव स्थली है जहाँ कनखल सती कुण्ड से लेकर 12 हजार फीट के उतंग शिखरों पर शक्तिदात्री माँ के अनेक सिद्धपीठ विधमान हैं। यदि मानव के ह्दय में इन सिद्धपीठों के प्रति विश्वासमयी भावना हो तो जगत जननी माँ के दर्शन किसी न किसी रुप में किये जा सकते हैं। इसलिए शक्ति की साधना को ही समस्त कार्यो की सिद्धि माना जाता है! माँ जगत जननी की महिमा का वर्णन ऋषि मुनियों ने भी बड़ी गहनता से किया है तथा सर्व शक्तिमान देवताओं को भी सदा ही अपनी विपदाओं के निवारणार्थ इसी आध्या शक्ति की ही उपासना करनी पडी है।परम पिता भगवान शंकर व जगत जननी मोक्षदायिनी माँ भवानी की इस तपोभूमि उत्तराखंड के कण - कण में अवस्थित देवी के शक्तिपुजो में जो मानव अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है वह व्यक्ति सांसारिक सुखों को भोग कर अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर युगों तक शिवलोक में पूजनीय होता है। केदार घाटी के अन्तर्गत सिद्धपीठ कालीमठ के पूर्व भाग में दो कोस दूर विशाल पर्वत पर विराजमान भगवती काली का तीर्थ काली शिला नाम से विश्व विख्यात है। इस तीर्थ में भगवती काली की विशाल शिला है तथा विशाल शिला पर 64 यंत्र विधमान हैं, भगवती काली शिला की पूजा करने से अखिल कामनाओं व अर्थों की पूर्ति होती है। काली शिला तीर्थ मधु गंगा व सरस्वती नदियों के मध्य विशाल पर्वत पर है! भगवती काली शिला मदमहेश्वर घाटी व कालीमठ घाटी के ग्रामीणों की अराध्य देवी मानी जाती है! मदमहेश्वर घाटी के राऊलैक तथा कालीमठ घाटी के ब्यूखी गाँव से पैदल मार्गों से सिद्धपीठ काली शिला पहुंचा जा सकता है। इस तीर्थ में भगवती काली के मन्दिर की पूजाये देव स्थानम् बोर्ड तथा विशाल शिला की पूजा स्थानीय हक - हकूकधारियों द्वारा की जाती है।भगवती काली शिला की महिमा का वर्णन क्रूम पुराण के अध्याय 56 के श्लोक संख्या चार में शिलातले मदं न्यस्त नास्तिकानां शब्दों में किया गया है जबकि महाकवि कालिदास ने भी काली शिला तीर्थ की महिमा का वर्णन गहनता से किया है। स्कन्ध पुराण के केदारखण्ड के अध्याय 89 के श्लोक संख्या 40 से 49 में काली शिला तीर्थ की महिमा का वर्णन विस्तार से किया गया है, केदारखण्ड में कहा गया है कि सिद्धपीठ कालीमठ के पूर्व भाग में दो कोश दूर पर्वत पर रणमण्डना नाम से महादेवी हैं! वहाँ जाने पर मनुष्य स्वस्थ देवीलोक को प्राप्त करता है। शरद व बसन्त ऋतुओं के नवरात्रों में जो मनुष्य भक्ति पूर्वक भगवती काली को नैवैध चढा़ता है वह देव लोक में युगों तक पूजनीय होता है तथा वह घुंघरूओं के समूह की माला से युक्त उत्तम विमान पर सवार होकर चारों ओर अप्सराओं के समूह, गन्धवों,सिद्धों और किन्नरो से शोभायमान हो सूर्य मण्डल का भेद करके मुनिवरो के अभीष्ट एवं दु:ख रहित ब्रह्मलोक को जाता है। यह तीर्थ समस्त पापों का शमन करने वाला और सकल उपद्रवों का नाश करने वाला है! नित्य दान करने वाले मनुष्यों को यह तीर्थ ऐश्वर्य देने वाला है! इस पर्वत पर महाकाली ने आकाश में उछलकर अत्यन्त दृढ़ हाथों से पृथिवी को ताडित किया था।आज भी वहाँ हाथों का अत्यन्त निर्मल चिह्न दिखाई देते हैं , तपस्या की सिद्धि देने वाला यही उत्तम स्थान है, इस पर्वत पर सिद्ध, गन्धर्व और किन्नर देवी के साथ सुखपूर्वक विचरण करते है।भगवती काली का पावन तीर्थ काली शिला की पूजा - अर्चना करने से मनुष्य को पुत्र पौत्रादि की प्राप्ति व यश वृद्धि का अभीष्ट फल मिलता है! इस तीर्थ में दशकों से बाबा बरखा गिरी। मुक्तेश्वर गिरी व जर्मनी निवासी सरस्वती माई भगवती काली की भक्ति में तत्लीन है! शिक्षाविद देवानन्द गैरोला,चन्द सिंह नेगी इं0कृष्ण कुमार सिंह बिष्ट अनिल जिरवाण,धीर सिंह नेगी विनोद नेगी साध्वी सरस्वती बताते है कि इस तीर्थ में एक रात्रि निवास करने से मनुष्य को परम आनन्द की अनुभूति होती है! हरेन्द्र खोयाल,शिव सिंह रावत,रवींद्र भट्ट. दलीप रावत, मदन भटट् रणजीत रावत का कहना है कि काली शिला तीर्थ में भगवती काली की विशाल शिला की परिक्रमा का विशेष महत्व माना गया है।
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