तेरे ही आंगन की फुलवारी में मैं नव दुर्गा का स्वरूप दिखलाऊं - कृतिका देवली बण्ड गडोरा चमोली

देख खड़ी मैं द्वारे तेरे मां
नैनों में दर्शन की प्यास लिए 
मैं छोटी नन्हीं बिटिया तेरी 
तुझसे मिलन की आस लिए ।।


भक्ति में तेरी ही चूर रहूं मां
अपने अंदर तेरा ही अहसास लिए 
नित पूजते इस नन्हीं को लोग 
नवरात्रि में व्रत उपवास लिए।।


शक्ति का तू रूप है माता
अष्टभुजा धारी सिंह पर विराजे
उपकार करदे मां मुझपर तू 
दुर्गा रूप जो मुझ पर साजे ।।


हूं पर्वतराज हिमालय पुत्री , 
 शैलपुत्री मैं यूं कहलाऊं 
 तप का आचरण सदा करूं 
 ब्रह्मचारिणी मैं बन जाऊं ।।


स्वर्णिम चंद्रघंटा दिखे जो मुझमें 
शांति , कल्याण जग में फैलाऊं 
मुस्कान से अपनी दुख हर लूं सबके 
कूष्माण्डा सी छवि बन जाऊं ।।


इक मां सा निस्वार्थ प्रेम लिए 
स्कंदमाता बन ममता बरसाऊं 
कात्यायनी बन सुख बांटू सबको
मुख अलौकिक तेज झलकाऊं ।।


कालरात्रि सी भयहीन रहूं मैं
दुष्टों का सर्वनाश कर पाऊं
बुराई मिटा सबके भीतर की 
महागौरी का स्वरूप सजाऊं ।।


सिद्धिदात्री बन सकारात्मकता बिखरा
 भीतर अपने अदम्य ऊर्जा बसाऊं 
 आखन तेरा ध्यान करूं मैं मय्या 
जीवात्मा में अपनी तेरे नौ रूप समाऊं ।।


उपासना करूं मां तेरी हरदम
ह्रदय में अपने तुझको मैं बसाऊं
तेरे ही आंगन की फुलवारी में मैं
नव दुर्गा का स्वरूप दिखलाऊं ।।


 



कृतिका देवली
बण्ड गडोरा
चमोली उत्तराखण्ड