बेटी हूँ, हूँ बहु मैं, सुख - दुःख सब मैंने पाया, मैंने इस जीवन में, दो घरों का घर बसाया - अनीशा रावत ✍️

विषय - " शादी के दिन रोयी बेटी "



हाँ आज मैं रोयी, 
कौन मुझे मनाता |
अस्त - व्यस्त हैं सब यहाँ, 
कौन मुझे समझाता ||


दर्द मेरा मैं ही जानती हूँ, 
हर गलती पर खुद संभलती हूँ |
भले झुकाता हैं जमाना मुझे, 
पर मैं खुद को घर का ताज मानती हूँ ||


हल्दी से जब लिपटा मुझे, 
आंसू मेरा टपक रहा था |
दिल अपना मजबूत बनाकर, 
बाबा ने सर पर हाथ रखा था ||


आयी जब बारात आंगन में, 
धड़का वो दिल आज मेरा |
ढो़ल - बाजे की आवाज यहाँ, 
खुश था घर परिवार  मेरा ||


विदाई का वक्त आया, 
झट से मुझे डोले पर बिठाया |
जोरो से रो रही थी, 
पर पास न कोई मेरे आया ||


अंजान घर में आकर, 
कदम जब मैंने रखा |
कैसे रिश्ते निभाना, 
आज इसी घर से सीखा ||


बेटी हूँ, हूँ बहु मैं, 
सुख - दुःख सब मैंने पाया |
मैंने इस जीवन में, 
दो घरों का घर बसाया ||||


अनीशा रावत ✍️
गोपेश्वर ( चमोली ) 
उत्तराखंड 😊