विषय - " शादी के दिन रोयी बेटी "
हाँ आज मैं रोयी,
कौन मुझे मनाता |
अस्त - व्यस्त हैं सब यहाँ,
कौन मुझे समझाता ||
दर्द मेरा मैं ही जानती हूँ,
हर गलती पर खुद संभलती हूँ |
भले झुकाता हैं जमाना मुझे,
पर मैं खुद को घर का ताज मानती हूँ ||
हल्दी से जब लिपटा मुझे,
आंसू मेरा टपक रहा था |
दिल अपना मजबूत बनाकर,
बाबा ने सर पर हाथ रखा था ||
आयी जब बारात आंगन में,
धड़का वो दिल आज मेरा |
ढो़ल - बाजे की आवाज यहाँ,
खुश था घर परिवार मेरा ||
विदाई का वक्त आया,
झट से मुझे डोले पर बिठाया |
जोरो से रो रही थी,
पर पास न कोई मेरे आया ||
अंजान घर में आकर,
कदम जब मैंने रखा |
कैसे रिश्ते निभाना,
आज इसी घर से सीखा ||
बेटी हूँ, हूँ बहु मैं,
सुख - दुःख सब मैंने पाया |
मैंने इस जीवन में,
दो घरों का घर बसाया ||||
अनीशा रावत ✍️
गोपेश्वर ( चमोली )
उत्तराखंड 😊