आ जाओ बच्चों लौट कर तुम्हें स्कूल बुलाता है स्कूल की हर दीवारों से तुम्हारा बचपन का नाता है - शशि देवली

तुम्हें स्कूल बुलाता है
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आ जाओ बच्चों लौट कर
तुम्हें स्कूल बुलाता है
स्कूल की हर दीवारों से
तुम्हारा बचपन का नाता है।


खामोश है वो हाॅल भी
जहां संगीत गूंजा करता था
कलाम विवेकानन्द के विचारों से
दिन का शुभारंभ होता था।


सूरज की एक किरण बिखरती
मुस्कान पसर सी जाती थी
वो नन्हीं श्रेया गेट पर आकर
आंसू कैसे टपकाती थी।


लिपटी ख्यालों में मैं
सोच रही हूं
नैनों में चित्र अधूरे हैं
सूना है स्कूल का आंगन 
तुम बिन कहां हम पूरे हैं।


वो शोर अब होता नहीं है
बेंच एक दूजे को ताकते हैं
न होमवर्क के वादे होते
न पनिशमैंट की बातें हैं।


मुंह पर मास्क लगाए हुए हम
दीवारों को ताक रहे
मे आई कमिन सुनने के लिए
दरवाजे की तरफ हैं झांक रहे।


ब्लैक बोर्ड ने है शिकवा किया
मैं तन्हा हूं अब यहां पड़ा
उछल- उछल कर लिखने वाले
कोई नहीं अब यहां खड़ा।


गवाह होती थी जो सीढ़ीयां
कौन किस फ्लोर में गया हुआ
वो सीढ़ीयां हमको चिढ़ा रही हैं
मन का कोना भी धुंआ- धुंआ।


कोरोना तू ये क्या कर बैठा
मुस्कराहट छिन गयी होंठों से
हर चेहरा है अन्जान बना
जाने कब मुलाकात हो दोस्तों से।



शशि देवली
गोपेश्वर चमोली
उत्तराखण्ड