भगवान महेश्वर की डोली शनिवार को धाम के लिए होगी रवाना, कैसे पहुंचे बाबा के धाम जानने के लिए पढ़ें लक्ष्मण नेगी की खास रिपोर्ट

  • ऊखीमठ! पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विख्यात भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली आज अपने शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर से धाम के लिए रवाना होगी! भले ही डोली के धाम आरंभ के लिए अभी जिला प्रशासन से देव स्थानम् बोर्ड को कोई गाइडलाइन तो नहीं  मिली है मगर पूर्व में हुई वार्ता के अनुसार भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली अपने शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर से मंगोलचारी तक पैदल मार्ग से रवाना होगी तथा वहां पर परम्परा अनुसार सूक्ष्म समय में अर्ध्य लगने के बाद भगवान मदमहेश्वर की डोली वाहन से रवाना होकर प्रथम रात्रि प्रवास के लिए राकेश्वरी मन्दिर रासी पहुंचेगी। रासी गाँव में भी दशकों से चली परम्परा अनुसार भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली को ग्रामीणों द्वारा अर्ध्य अर्पित किया जायेगा! देव स्थानम् बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार 10 मई को भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली राकेश्वरी मन्दिर रासी से प्रस्थान कर अन्तिम रात्रि प्रवास के लिए गौण्डार गाँव पहुंचेगी तथा 11 मई को बह्य बेला पर गौण्डार गाँव से प्रस्थान कर बनातोली, खटारा, नानौ,मैखम्भा, कूनचटटी यात्रा पड़ावों से होते हुए धाम पहुंचेगी तथा भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के धाम पहुंचने पर भगवान मदमहेश्वर के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिये जायेगे! भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के ऊखीमठ से धाम पहुंचने तथा कपाट खुलने के अवसर पर प्रशासन द्वारा नियुक्त अधिकारी, कर्मचारी व हक - हकूकधारी ही शामिल हो सकते तथा लॉक डाउन के नियमों का सख्ती से पालन करना होगा।                                                                                              न्याय के देवता माने जाते हैं भगवान मदमहेश्वर -  पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विख्यात भगवान मदमहेश्वर के धाम में भगवान शंकर के मध्य भाग की पूजा होती है! भगवान मदमहेश्वर को न्याय का देवता माना जाता है! भगवान मदमहेश्वर के दरबार में जो श्रद्धालु सच्ची श्रद्धा लेकर जाता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान मदमहेश्वर के स्वयंभू लिंग की प्राचीन कथा नेपाल के राजा यशोधवल से जुड़ी है! पूर्व में मन्दिर समिति के 1939 के अधिनियम के अनुसार मदमहेश्वर धाम की देखरेख व अन्य हक - हकूक का जिम्मा गौण्डार के ग्रामीणों का है जिनका निर्वहन ग्रामीण सच्ची श्रद्धा व लगन से करते आ रहे हैं!                                                                                                                           कैसे पहुंचे मदमहेश्वर धाम                                                                                                        देवभूमि उत्तराखंड के प्रवेश द्वार हरिद्वार से निजी वाहनों या फिर बस से 204 किमी की दूरी तय करने के बाद तहसील मुख्यालय, भगवान मदमहेश्वर के शीतकालीन गद्दी स्थल ऊखीमठ पहुंचा जा सकता है। ऊखीमठ से फिर 22 किमी की दूरी रासी गाँव तक भी वाहनों से पहुंचा जा सकता है! रासी ( अकतोली) से 16 किमी की दूरी पैदल चलने के बाद मदमहेश्वर धाम पहुंचा जा सकता है।16 किमी पैदल मार्ग पर गौण्डार, बनातोली, खटारा, नानौ, मैखम्भा, कूनचटटी व मदमहेश्वर धाम में रहने व खाने की उचित व्यवस्थायें है मगर लॉक डाउन के कारण सभी यात्रा पड़ाव विरान पडे़ हुए हैं! मदमहेश्वर धाम के ऊपरी चोटी पर सुरम्य मखमली बुग्यालों के मध्य बूढ़ा मदमहेश्वर का अलौकिक तीर्थ मौजूद है! उस तीर्थ में पूजा - अर्चना करने से भटके मन को अपार शान्ति मिलती है ! वहां से चौखम्भा पर्वत को अति निकट से दृष्टि गोचर किया जा सकता है : मदमहेश्वर - पाण्डवसेरा- नन्दी कुंड- कल्पनाथ पैदल ट्रेक से आवाजाही होती है। जबकि एक पैदल ट्रेक पनपतिया  होते हुए गोविन्द घाट चमोली निकलता है। इन पैदल ट्रेकों पर सैलानियों के साथ गाइड के रूप में स्थानीय युवक कार्य कर स्वरोजगार की दिशा में साहसिक प्रयास तो कर रहे थे मगर लॉक डाउन के कारण स्थानीय गाइडों के सन्मुख भी रोटी का संकट खड़ा हो गया है!                                                ज्येष्ठ माह की तीन पूजायें ऊखीमठ में होने की है परम्परा  -                                                      स्थानीय लोक मान्यताओं के अनुसार भगवान मदमहेश्वर की कपाट खुलने से पूर्व ज्येष्ठ माह की तीन पूजायें ऊखीमठ में तथा कपाट बन्द होने से पूर्व मार्गशीर्ष माह में पांच पूजाये मदमहेश्वर धाम में होने की परम्परा है इसलिए प्रति वर्ष भगवान मदमहेश्वर के कपाट अन्य धामों के बजाय देर से खुलते हैं तथा देर से बन्द होते हैं। मगर इस बार भगवान मदमहेश्वर के वैसाख महीने में ही हिमालय जाना  की तिथि किस आधार पर घोषित हुई यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है!                  लॉकडाउन से शीतकालीन गद्दी स्थलों में पहुंचे कम यात्री, वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण हुए  लॉकडाउन से शीतकालीन गद्दी स्थलों की यात्रायें भी प्रभावित हुई हैं। लॉक डाउन होने से पूर्व प्रशासन ने शीतकालीन गद्दी स्थलों सहित सभी तीर्थों में 20 मार्च से सार्वजनिक आवाजाही पर रोक लगा दी थी, भगवान मदमहेश्वर के शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर की बात करें तो विगत वर्ष 1 जनवरी से 30 अप्रैल तक ओकारेश्वर मन्दिर में 8596 तीर्थ यात्रियों ने दर्शन किये। जबकि इस वर्ष 1 जनवरी से 20 मार्च तक 3876 ही तीर्थ यात्री भगवान ओकारेश्वर के दर्शन कर पाये!